________________ 216 आधारांग सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध जा य भासा असच्चामोसा तहप्पगारं भासं सावज सकिरियं कक्कसं कडयं णिरं फरसं अण्हयकरि छयणरि भेयणकरि परितावणार उद्दवणकरि भूतोवघातियं अभिकख णो भासेज्जा। ___525. से भिक्खू वा 2 जा य भासा सच्चा सुहमा जा य भासा असच्चामोसा तहप्पगारं भासं असावज्ज अकिरियं जाव अभूतोवघातिय अभिकंख भासेज्जा। 526. से भिक्खू वा 2 पुमं आमंतेमाणे आमंतिते वा अपडिसुणेमाणे गो एवं वदेज्जाहोले ति वा, गोले ति वा, वसुले ति वा कुपक्खे ति वा, घडदासे ति वा, साणे ति वा तेणे ति वा, चारिए ति वा मायो ति वा, मुसावादी ति वा, इतियाई तुम, इतियाइं ते जगगा वा। एतप्पगारं भासं सावज्ज सकिरियं जाव' अभिकंख णो भासेज्जा। ___ 527. से भिक्खू वा 2 पुमं आमंतमाणे आमंतिते वा अपडिसुणेमाणे एवं वदेज्जाअमुगे ति वा, आउसो ति वा, आउसंतारो ति वा, सावके ति वा, उवासगे ति वा। धम्मिए ति वा, धम्मप्पिए ति वा। एतप्पगारं भासं असावज्जं जाव' अभूतोवघातियं अभिकंख भासेज्जा। ___ 528. से भिक्खू वा 2 इत्थी आमंतेमाणे आमंतिते य अपडिसुणेमाणी णो एवं वदेज्जा--होली ति वा, गोली ति वा, इत्थिगमेणं तब्वं / 526. से भिक्खू वा 2 इत्थी आमंतेमाणे आमंतिते य अपडिसुणेमाणी एवं वदेज्जाआउसो ति वा, भगिणी ति वा, भोई ति वा, भगवती ति वा, साविगे ति वा, उवासिए ति वा, धम्मिए ति या, धम्मप्पिए ति वा / एतप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभिकंख भासेज्जा। 1. कक्कसं का अर्थ चूर्णिकार करते हैं.--'कक्कसा किलेसं करेति'-कर्कशा भाषा क्लेश कराती है। 2. 'णिठरं करुसं' दोनों एकार्थक होने से किसी-किसी प्रति में 'गिट्र र' पद नहीं है। 3. 'णो भासेज्जा' के बदले पाठान्तर हैं—भासं न भासेज्जा', णो भासं भासेज्जा'। 4. यहाँ 'जाव' शब्द से 'अकिरियं' से लेकर 'अभिकख' तक का समग्र पाठ सूत्र 524 के अनुसार समझें। 5. तुलना कीजिए- "तहेब फरुसा भासा गुरुभूओवघाइणी / / सच्चा वि सान बत्तम्या, जओ पावस्स आगमो।।"-दशव० अ०६ मा० 11 6. तुलना कीजिए- तहेव होले गोले त्ति, साणे वा वसुलेत्ति य / ___ दमए दुहए वा वि, नेवं भासेज्ज पन्नवं // -दशव 0 अ०७/गा० 14 7. तुलना कीजिए-दशकालिक अ० ७/गा० 10 ......"तेणं चोरे त्ति नो वए।' 8. यहाँ जाव शब्द से 'सकिरिय' से 'अभिकंख' तक का सारा पाठ सू० 524 के अनुसार समझें। 6. 'धम्मप्पिए' के बदले पाठान्तर है—'धम्मपीए धम्मियपितिए, धम्मपिय त्ति धम्मपितिए ति' आदि। 10. 'जाव' शब्द से यहाँ 'असावज्ज' से 'अभतोवधातियं' तक का पाठ सु० 524 के अनुसार समझें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org