________________ चतुर्थ अध्ययन : प्रथम उद्देशक : सूत्र 521 अज्झत्थवयणं 7, उवणीयधयणं 8, अवणीयवयणं 6, उवणीतअवणीतवयणं 10, अवणीतउवणीतवयणं 11, तीयवयणं 12, पड़प्पण्णवयणं 13, अणागयवयणं 14, पच्चक्खवयणं 15, परोक्खवयणं 16 // से एगवयणं वदिस्सामीति एगवयणं वदेज्जा, जाव परोक्खवयणं वदिस्सामोति परोक्खवयणं वदेज्जा / इत्थी' वेस, पुमं बेस, णपुंसगं वेस, एवं वा चेयं, अण्णं वा चेयं, अणुवोयि गिट्ठाभासी समियाए संजते भास भासेज्जा। 521. संयमी साधु या साध्वी विचारपूर्वक भाषा समिति से युक्त निश्चितभाषी एवं संयत होकर भाषा का प्रयोग करे। जैसे कि (ये 16 प्रकार के वचन है-) (1) एकवचन, (2) द्विवचन, (3) बहुवचन, (4) स्त्रीलिंग-कथन, (5) पुल्लिग-कथन, (6) नपुंसकलिंग कथन, (7) अध्यात्म-कथन, (8) उपनीत-(प्रशंसात्मक) कथन, (8) अपनोत-(निन्दात्मक) कथन, (10) उपनीताऽपनीत—(प्रशंसा-पूर्वक निन्दा-वचन) कथन, (11) अपनीतोपनीत-(निन्दापूर्वक प्रशंसा) कथन, (12) अतीतवचन, (13) वर्तमानवचन, (14) अनागत-(भविष्यत्) वचन, (15) प्रत्यक्षवचन और (16) परोक्षवचन / यदि उसे 'एकवचन' बोलना हो तो वह एकवचन ही बोले, यावत् परोक्षवचन पर्यन्त जिस किसी वचन को बोलना हो, तो उसी वचन का प्रयोग करें। जैसे—यह स्त्री है, यह पुरुष है, यह नपुंसक है, यह वही है या यह कोई अन्य है, इस प्रकार जब विचारपूर्वक निश्चय हो जाए, तभी निश्चयभाषी हो तथा भाषा-समिति से युक्त हो कर संयत भाषा में बोले। विवेचन-भाषाप्रयोग के समय सोलह वचनों का विवेक-प्रस्तुत सूत्र में 16 प्रकार के वचनों का उल्लेख करके उनके प्रयोग का विवेक बताया है, साधु को जिस किसी प्रकार का कथन करना हो, पहले उस विषय में तदनुरूप सम्यक् छानबीन करले कि मैं जिस वचन का वास्तव में प्रयोग करना चाहता हूं, वह उस प्रकार का है या नहीं ? यह निश्चित हो जाने के बाद ही भाषा-समिति का ध्यान रखता हुआ, संयत होकर स्पष्ट वचन कहे। इन 16 वचनों के प्रयोग में 4 बातों का विवेक बताया गया है--(१) भलीभांति छानबीन करना, (2) स्पष्ट निश्चय करना, (3) भाषा-समिति का ध्यान रखना, और (4) यतनापूर्वक स्पष्ट कहना। इस सूत्र से ये 8 प्रकार के वचन निषिद्ध फलित होते हैं--(१) अस्पष्ट, (2) संदिग्ध, (3) केवल अनुमित, (4) केवल सुनी-सुनाई बात, (5) प्रत्यक्ष देखी, परन्तु छानबीन न की हुई, 1. 'इत्थीवेस पुमं वेस णपुसग वेस' के बदले पाठान्तर है-इत्थी वेस पूर्ण वेस णपसगं वेस', 'इत्थीवेसा पुरिसे नपुंसगं वेस' एवं इत्थीवेसं पुरिसवेसं गपुसमवेसं / ' चूर्णिकार सम्मत पाठ अन्तिम है। चणि. कृत व्याख्या इस प्रकार है-इत्थि पुरिसणेवच्छितं ण वदिज्जा-एसो पुरिसो गच्छति एषोऽप्येवं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org