________________ चउत्थं अज्झयणं 'भासज्जाया' पढमो उद्देसओ भाषाजात : चतथं अध्ययन : प्रथम उद्देशक भाषागत आचार-अनाचार विवेक 520. से भिक्खू वा 2 इमाई वइि-आयाराई सोच्चा णिसम्म इमाइं अणायाराई अणायरियपुवाई जाणेज्जा–जे कोहा वा वायं विउंजंति, जे माणा वा वायं विउंजंति, जे मायाए वा वायं विउंजंति, जे लोभा वा वायं विउंजंति, जाणतो वा फरसं वदंति, अजाणतो वा फरसं वयंति / सव्वं चेयं सावज्ज वज्जेज्जा विवेगमायाए–धुवं चेयं जाणेज्जा, अधुवं चेयं जाणेज्जा, असणं वा 4 लभिय, णो लभिय, भुंजिय, णो भुंजिय, अदुवा आगतो अदुवा णो आगतो, अदुवा एति, अदुवा णो एति, अदुवा एहिति, अदुवा णो एहिति, एत्थ वि आगते,' एत्थ वि णो आगते एत्थ वि एति, एत्थ वि णो एति, एत्थ वि एहिति, एत्थ वि णो एहिति। 520. संयमशील साधु या साध्वी इन वचन (भाषा) के आचारों को सुनकर, हृदयंगम करके, पूर्व-मुनियों द्वारा अनाचरित भाषा-सम्बन्धी अनाचारों को जाने / (जैसे कि) जो क्रोध से वाणी का प्रयोग करते हैं, जो अभिमानपूर्वक वाणी का प्रयोग करते हैं, जो छल-कपट सहित भाषा बोलते हैं, अथवा जो लोभ से प्रेरित होकर वाणी का प्रयोग करते हैं, जानबूझ कर कठोर बोलते हैं, या अनजाने में कठोर वचन कह देते हैं-ये सब भाषाएं सावध (स-पाप,) हैं, 1. 'वइ-आयाराई" के बदले पाठान्तर हैं-वयिआयाराइ, वइयायाराइ, वययाराई आदि / अर्थ समान है। 2. 'जे माणा वा वायं विउ जति आदि पाठ के बदले पाठान्तर हैं.---'जे माणा वा. वएज्जा, जे मायाए वा,""""माया था, जंमाणा वा जे मायाए वा अर्थ समान हैं। 3. माया आदि का तात्पर्य चणिकार के शब्दों में माया-'गिलाणो हं', लोभा-वाणिज्ज करेमाणे / अर्थात्-माया से बोलना-जैसे—'मैं बीमार है।' लोभ से बोलना-वाणिज्य (सौदेबाजी, अदला बदली) करता हुआ। 4. धुवं चेयं जाणेज्जा—का तात्पर्य वृत्तिकार के शब्दों में-'ध्रुवमेतद् निश्चितं' दृष्ट्यादिकं भविष्यतीत्येवं जानीयात् / ' अर्थात्-यह निश्चित है कि वृष्टि आदि होगी ही; इस प्रकार जाने या शर्त लगाए / 5. 'एत्थ वि आगते का तात्पर्य चूर्णिकार के शब्दों में--'अस्मिन् एत्य ग्रामे संखडीए वा' इस गांव में या इस संखडी (प्रीतिभोज) में। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org