________________ आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रु तस्कन्ध * भावतः 'भाषाजात' तब होता है, जब पूर्वोक्त उत्पत्ति आदि चतुर्विध द्रव्य भाषाजात कान में पड़कर 'यह शब्द है' इस प्रकार की बुद्धि पैदा करते हैं।' र साधु-साध्वियों के लिए पूर्वोक्त भाषाजात का निरूपण होने से इस अध्ययन का नाम 'भाषाजात अध्ययन' रखा गया है / 4 इसके दो उद्देशक हैं। यद्यपि दोनों का उद्देश्य साधु वर्ग को वचन-शुद्धि का विवेक बताना है; तथापि दोनों में से प्रथम उद्देशक में 16 प्रकार की वचन-विभक्ति बताकर भाषा-प्रयोग के सम्बन्ध में विधि-निषेध बताया गया है। - दुसरे उद्देशक में भाषा की उत्पत्ति के सन्दर्भ में क्रोधादि समुत्पन्न भाषा को छोड़कर निर्दोष-बचन बोलने का विधान किया गया है। 2. यह अध्ययन सूत्र 520 से प्रारम्भ होकर 552 पर समाप्त होता है। 1. (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक 385 / (ख) पाइअ-सद्दमहण्णवो पृ० 354 / 2. (क) आचारांग नियुक्ति गाथा 314 / (ख) आचारांग वृत्ति पत्रांक 385 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org