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________________ भाषाजात : चतुर्थ अध्ययन प्राथमिक - आचारांग सूत्र (द्वि० श्रु तस्कन्ध) के चतुर्थ अध्ययन का नाम 'भाषाजात' है। न भाषा का लक्षण है--जिसके द्वारा दूसरे को अपना अभिप्राय समझाया जाए, जिसके माध्यम से अपने मन में उद्भूत विचार दूसरों के समक्ष प्रकट किया जाए, तथा दूसरे के दृष्टिकोण, मनोभाव या अभिप्राय को समझा जाए। - 'जात' शब्द के विभिन्न अर्थ मिलते हैं, जैसे---उत्पन्न, जन्म, उत्पत्ति, समूह, संघात, प्रकार, भेद, प्रवृत्त / यात प्राप्त, गमन, गति, गीतार्थ-विद्वान् साधु आदि / ' - इस दृष्टि से भाषाजात के अर्थ हुए-भाषा की उत्पत्ति, भाषा का जन्म, भाषा जो उत्पन्न हुई है वह, भाषा का समूह, भाषा के प्रकार, भाषा की प्रवृत्तियाँ, प्रयोग, भाषा को प्राप्ति-(ग्रहण), भाषा-प्रयोग में गीतार्थ साधु आदि / 4 इन सभी अर्थों के सन्दर्भ में वृत्तिकार ने 'भाषाजात' के नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ये 6 निक्षेप करके प्रस्तुत अध्ययन में द्रव्य-भाषाजात का प्रतिपादन अभीष्ट माना है। , 'जात' शब्द के पूर्वोक्त अर्थों को दृष्टिगत रखकर द्रव्य-भाषाजात के चार प्रकार बताए हैं-१. उत्पत्तिजात, 2. पर्यवजात, 3. अन्तर्जात और 4. ग्रहणजात। 5 (1) काययोग द्वारा गृहीत भाषावर्गणान्तर्गत द्रव्य जो वाग्योग से निकल कर भाषा रूप में उत्पन्न होते हैं, वे उत्पत्तिजात है। 27 (2) उन्हीं वाग्योग-निःसृत भाषा द्रव्यों के साथ विश्रोणि में स्थित भाषावर्गणा के अन्तर्गत द्रव्य टकरा कर भाषापर्याय के रूप में उत्पन्न होते हैं, वे पर्यवजात हैं। 5 (3) जो अन्तराल में, समश्रेणि में स्थित भाषा-वर्गणा के पुद्गल,वर्गणा द्वारा छोड़े गये भाषा द्रव्यों के संसर्ग से भाषा रूप में परिणमत हो जाते हैं, वे अन्तरजात हैं। 1 (4) जो समणि-विश्रोणिस्थ द्रव्य भाषा रूप में परिणत तथा अनन्त-प्रदेशिक कर्ण-कुहरों में प्रविष्ट होकर ग्रहण किये जाते हैं, वे ग्रहणजात कहलाते हैं। 1. पाइअ-सद्दमहण्णवा पृ० 354 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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