SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 574
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय अध्ययन : प्रथम उद्देशक : सूत्र 415-18 121 वा ठाणाओ ठाणं साहरति बहिया वा णिज्णक्ख / तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव णो' ठाणं वा 3 चेतेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडे जाव' चेतेज्जा। 418. से भिक्खू वा 2 से ज्ज.पुण उवस्सयं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खुपडियाए पोढं वा फलगं वा णिस्सेणि वा उदूखलं वा ठाणाओ ठाणं साहरति बहिया वा णिण्णक्ख / तहप्पगारे उपस्सए अपुरिसंतरकडे जाव णो ठाणं वा 3 चेतेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडे जाव चेतेज्जा। 415. वह भिक्षु या भिक्षुणी यदि ऐसा उपाश्रय जाने जो कि असंयत गृहस्थ ने साधुओं के निमित्त बनाया है, काष्ठादि लगाकर संस्कृत किया है, बाँस आदि से बांधा है, घास आदि से आच्छादित किया है, गोबर आदि से लीपा है, संवारा है, घिसा है, चिकना (सुकोमल) किया है, या ऊबड़खाबड़ स्थान को समतल बनाया है, दुर्गन्ध आदि को मिटाने के लिए धूप आदि सुगन्धित द्रव्यों मे सुवासित किया है, ऐसा उपाश्रय यदि अपुरुषान्तरकृत यावत् अनासेवित हो तो उसमें कायोत्सर्ग, शय्यासंस्तारक और स्वाध्याय न करे। यदि वह यह जान जाए कि ऐसा (पूर्वोक्त प्रकार का) उपाश्रय पुरुषान्तरकृत यावत् आसेवित है तो उसका प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके यतनापूर्वक उसमें स्थान आदि क्रिया करे / 416. वह साधु या साध्वी ऐसा उपाश्रय जाने, कि असंयत गृहस्थ ने साधुओं के लिए जिसके छोटे द्वार को बड़ा बनाया है, जैसे पिण्डषणा अध्ययन में बताया गया है, यहाँ तक कि उपाश्रय के अन्दर और बाहर की हरियाली उखाड़-उखाड़ कर, काट-काट कर वहाँ संस्तारक (बिछौना) बिछाया गया है, अथवा कोई पदार्थ उसमें से बाहर निकाले गये हैं, वैसा उपाश्रय यदि अपुरुषान्तरकृत यावत् अनासेवित हो तो वहाँ कायोत्सर्गादि क्रियाएं न करे। यदि वह यह जाने कि ऐसा (पूर्वोक्त प्रकार का) उपाश्रय पुरुषान्तरकृत है, यावत् आसेवित है तो उसका प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके यतनापूर्वक किया जा सकता है। 417. वह साधु या साध्वी ऐसा उपाश्रय जाने, कि असंयत गृहस्थ, साधुओं के निमित्त से पानी से उत्पन्न हुए कंद, मूल, पत्तों, फलों या फलों को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जा रहा है, भीतर से कंद आदि पदार्थों को बाहर निकाला गया है, ऐसा उपाश्रय यदि अपुरुषान्तरकृत यावत् अनासेवित हो तो उसमें साधु कायोत्सर्गादि क्रियाएं न करे। यदि वह यह जाने कि ऐसा (पूर्वोक्त प्रकार का) उपाश्रय पुरुषान्तरकृत यावत् आसेवित 1. यहाँ आप शब्द से 'अपुरिसंसरकडे' से लेकर 'गो ठाणं वा' तक का समग्र सूत्र 331 के अनुसार समझें। 2. यहाँ जाव शब्द से पुरिसंतरकडे से लेकर चेतेज्जा तक का समग्र पाठ सुत्र 332 के अनुसार समझें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy