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________________ प्रथम अध्ययन : एकादश उद्देशक : सूत्र 406 106 तहप्पगारं पिहुयं वा जाव चाउलपलंबं वा सयं वा णं जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा। चउत्था पिडेसणा। [5] अहावरा पंचमा पिंडेसणा-से भिक्खू वा 2 जाव समाणे उबहितमेव' भोयणजातं जाणेज्जा, तंजहा- सरावंसि वा डिडिमंसि वा कोसगंसि वा / अह पुणेवं जाणेज्जा बहुपरियावण्णे पाणीसु दगलेवे / तहप्पगारं असणं वा 4 सयं वा णं जाएज्जा' जाव पडिगाहेज्जा पंचमा पिसणा। [6] अहावरा छट्ठा पिंडेसणा-से भिक्खू वा 2 उग्गहियमेव भोयणजायं जाणेज्जा जं च सयट्ठाए उग्गहितं जं च परट्ठाए उग्गहितं तं पादपरियावण्णं तं पाणिपरियावण्णं फासुयं जाव पडिगाहेज्जा / छट्ठा पिडेसणा। [7] अहावरा सत्तमा पिडेसणा-से भिक्खू वा 2 जाव समाणे बहुउज्झितधम्मियं भोयणजायं जाणेज्जा जं चण्णे बहवे दुपय-चउप्पय-समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा गावकखंति तहप्पगारं उज्झितधम्मियं भोयणजायं सयं व णं जाएज्जा परो वा से देजा जाव पडिगाहेज्जा / सत्तमा पिंडेसणा / इच्चेयाओ सत्त पिडेसणाओ। 8] अहावराओ सत्त पाणेसणाओ / तत्थ खलु इमा पढमा पाणेसणा-असंसठे हत्थे असंसठे मत्ते / तं चेव भाणियव्वं, णवरं चउत्थाए णाणतं, से भिक्खू वा 2 जाय समाणे से ज्जं पुण पाणगजातं जाणेज्जा, तंजहा तिलोदगं वा तुसोवगं वा जवोदगं या आयाम वा सोवीरं वा सुवियहं वा, अस्सि खलु पडिग्गाहितंसि अप्पे पच्छाकम्मे, तहेव जाव पडिगाहेज्जा। 1. उवहितमेव के स्थान पर चूणिकार ने उवहितं पाठान्तर मानकर व्याख्या की है-उबगहियं भुंज माणस्स सअट्ठाए उवणीतं / अर्थात् उपगहिता नामक पिण्डैषणा में उपग्रहीत का अर्थ है---भोजन करने वाला अपने लिए थाली आदि में भोजन परोसकर लाया है। 2. इसके स्थान पर पाठान्तर है.-जातेज्जा, जाणेज्जा, अर्थ है, याचना करे, जाने / 3. यहाँ जाव शब्द से सू० 324 के अनुसार फासुयं से लेकर 'पडिगाहेज्जा' तक का पाठ समझें / 4. छठी पिण्डषणा का भावार्थ चूणिकार के शब्दों में--छट्ठा उगहिता फग्गहिता, उग्गहितं दध्वं हस्थ गतं, पग्गहितं दाहिण-हत्वगतं दिज्जमाणं एलुगविखंभमेत्तं, अस्स वि अट्ठाए उग्गहियं पग्गहियं सो नेछति पादपरियावन्तं कसभाय (जो गस्थि दगलेवो पाणीस नस्थि दगलेयो तस्स नियत्तो भावो छट्ठी' अर्थात्--छठी पिण्डषणा उद्गृहीता प्रगृहीता है। उद्गृहीत-द्रव्य हस्तगत किया है। प्रगृहीत. दाहिने हाथ में लिया हुआ द्रव्य, दाता और आदाता के बीच में देहली के द्वार तक का अन्तर है। जिसके लिए बह भोज्यद्रव्य हस्तगत किया और दाएं हाथ में लिया गया है, वह भी उसे नहीं चाहता, कांसी का बर्तन कच्चे पानी से लिप्त नहीं है, और न हाथ कच्चे पानी से लिप्त है, जिनको देना था. दिया जा चुका है। यह है-छठी पिण्डषणा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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