________________ प्रथम अध्ययन : अष्टम उद्देशक : सूत्र 374 81 ___ 'अंबाडग' आदि पदों के अर्थ--'अंबाडग' का अर्थ आम्रातक (आँवला) किया है,' किन्तु आगे 'आमलग' शब्द आता है, इसलिए अम्बाडं कोई अन्य फल विशेष होना चाहिए। मातुलुग-बिजौरे का फल, मुद्दिय --द्राक्षा, कोल=बेर, आमलग-:आँवला, चिंचा-इमली / अट्ठियं-गुठली सहित, सकणुअं=छाल आदि सहित, छन्वेग-बाँस की छलनी से, वालगेण = बालों से बनी छलनी से, आवीलियाण परिपोलियाण =एक बार मसल या निचोड़ कर, बार-बार मसल या निचोड़ कर, परिस्साइयाण=छान कर। आहार-गन्ध में अनासक्ति 374. से भिक्खू वा 2 जाव पविट्ठ समाणे से आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियावसहेसु वा अण्णगंधाणि वा पाणगंधाणि वा सुरभिगंधाणि वा आघाय 2 से तत्थ आसायपडियाए मुच्छिए गिद्ध गढिए अज्झोववण्णे 'अहो गंधो, अहो गंधो' णो गंधमाधाएज्जा। 374. वह भिक्षु या भिक्षुणी आहार प्राप्ति के लिए जाते समय पथिक-गृहों (धर्मशालाओं) में, उद्यानगृहों में, गृहस्थों के घरों में या परिव्राजकों के मठों में अन्न की सुगन्ध, पेय पदार्थ की सुगन्ध तथा कस्तूरी इत्र आदि सुगन्धित पदार्थों की सौरभ को सूंघ-सूंघ कर उस सुगन्ध के आस्वादन की कामना से उसमें मूच्छित, गृद्ध, ग्रस्त एवं आसक्त होकर—'वाह ! क्या ही अच्छी सुगन्धि है !' कहता हुआ (मन में सोचता हुआ) उस गन्ध की सुवास न ले। विवेचन-आहारार्थ जाते समय सावधान रहे-शास्त्र में अंगार, धूम आदि 5 दोष बताए हैं, जिन्हें साधु आहार का उपभोग करते समय राग द्वेष-ग्रस्त होकर लगा लेता है। प्रस्तुत सूत्र में आहार-पानी का सीधा उपभोग न होकर उनके सुगन्ध की सराहना करके परोक्ष उपभोग का प्रसंग है, जिसे शास्त्रकार ने परिभोगैषणा दोष के अन्तर्गत माना है। इस प्रकार खाद्य-पेय वस्तुओं की महक में आसक्त होने से वस्तु तो पल्ले नहीं पड़ती, सिर्फ राग (आसक्ति) के कारण कर्मबन्ध होता है / इसलिए इस सूत्र में गन्ध में होने वाली आसक्ति से बचने का निर्देश किया गया है। इस सूत्र से ध्वनित होता है कि भिक्षा के लिए जाते समय मार्ग में पड़ने वाली धर्मशालाओं, उद्यानगृहों, गृहस्थगृहों में या मठों में कहीं प्रीतिभोज के लिए तैयार किये जा रहे सरस-सुगन्धित स्वादिष्ट पदार्थों की महक पा कर साधु का मन विचलित हो जाता है, 1. (क) पाइअ सद्द महण्णवो, पृ० 11 / (ख) आचारांग वृत्ति पत्रांक 346 / 2. महाराष्ट्र में 'अम्बाडी' नामक पत्तेदार सब्जी होती है जिसका स्वाद खट्टा व कषैला होता है / 3. मराठी में चिच इमली के अर्थ में आज भी प्रयुक्त होता है। 4. देखें सूत्र 324 का टिप्पण पृष्ठ 8 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org