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________________ 3. प्रथम अध्ययन : तृतीय उद्देशक : सूत्र 336-340 उवस्सयंसि वा रातो वा वियाले वा गामधम्मनियंतियं' कटु रहस्सियं मेहुणधम्मपवियारणाए' आउट्टामो / तं चेगइओ सातिज्जेज्जा। ___ अकरणिज्जं चेतं संखाए, एते आयाणा संति संचिज्जमाणा पच्चवाया भवंति / तम्हा से संजए णियंठे तहप्पगारं पुरेसंखडि वा पच्छासंडि वा संर्खाड संखडिपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। __ 340. कदाचित् भिक्ष अथवा अकेला साधु किसी संखडि (बृहत् भोज) में पहुंचेगा तो वहाँ अधिक सरस आहार एवं पेय खाने-पीने से उसे दस्त लग सकता है, या वमन (कै) हो सकता है अथवा वह आहार भलीभांति पचेगा नहीं (हजम न होगा); फलतः (विशूचिका, ज्वर या शूलादि) कोई भयंकर दुःख या रोगातंक पैदा हो सकता है। इसीलिए केवली भगवान् ने कहा--'यह (संखडि में गमन) कर्मों का उपादान कारण है। इसमें (संखडि स्थान में या इसी जन्म में) (ये भयस्थल हैं)–यहां भिक्षु गृहस्थों के गृहस्थपत्नियों अथव परिव्राजक-परिवाजिकाओं के साथ एकचित्त व एकत्रित होकर नशीला पेय पीकर (नशे में भान भूलकर) बाहर निकल कर उपाश्रय (वास-स्थान) ढूंढ़ने लगेगा, जब' वह नहीं मिलेगा, तब उसी (पान-स्थल) को उपाश्रय समझकर गृहस्थ स्त्री-पुरुषों व परिव्राजक परिव्राजिकाओं के साथ ही ठहर जाएगा। उनके साथ घुलमिल जाएगा ! वे गृहस्थ-गृहस्थपत्नियां आदि (नशे में) मत्त एवं अन्यमनस्क होकर अपने आपको भूल जाएंगे, साधु अपने को भूल जाएगा। अपने को भूलकर वह स्त्री शरीर पर या नपुंसक पर आसक्त हो जाएगा। अथवा स्त्रियाँ या नपुंसक उस भिक्षु के पास आकर कहेंगे-आयुष्मन् श्रमण ! किसी बगीचे या उपाश्रय में रात को या विकाल में एकान्त में मिलें / फिर कहेंगे-ग्राम के निकट किसी गुप्त, प्रच्छन्न, एकान्तस्थान में हम मैथुन-सेवन किया करेंगे। उस प्रार्थना को कोई एकाकी अनभिज्ञ साधु स्वीकार भी कर सकता है। 1. गामधम्मणियंतियं के बदले चूर्णिकार 'गामणियंतियं कण्हुई रहस्सितं' पाठ मानकर व्याख्या करते हैं गाणियंतियं गाममन्भासं कण्हुइ रहस्सित कम्हिति रहस्से उच्छुअक्खा वा अन्नतरे वा पच्छण्णे, मिहु रहस्से सहयोगे च, पतियरण पवियारणा (पवियारणाए) आउट्टामो-कुर्वीमो।"--गामणियतिय-यानी ग्राम के निकट किसी एकान्त स्थान में, इक्षु के खेत में या किसी प्रच्छन्न स्थान में / मिह का अर्थ है- रहस्य या सहयोग, प्रविचारणा-मैथुन सेवन, आउट्टामो; करेंगे। 2. चर्णिकार इसका अर्थ करते हैं-'पतियरण पवियारणा अर्थात-प्रतिचरण=(मैथुन सेवन) प्रविचारणा 3. चेगइओ के बदले किसी-किसी प्रति में चेगाणिओ, एगतीयो पाठान्तर है। अर्थ समान है। 4. 'आयाणा' के बदले पाठान्तर मिलता--आयाणाणि आयतणाणि आदि / अथ में अन्तर है, प्रथम का ___ अर्थ है कर्मों का आदान (ग्रहण) तथा द्वितीय का अर्थ है-दोषों का आयतन स्थान है। संचिजमाणा के बदले किसी-किसी प्रति में संविज्जमाणा तथा संधिज्जमाण है, अर्थ क्रमश: हैसंवेदन (अनुभव) किये जाने वाले, कर्म पुद्गलों को अधिकाधिक धारण करने वाले / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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