________________ आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध 336. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्षुणीए वा सामग्गियं जं सवठेहि समिते सहिते सदा जए त्ति बेमि। // बीओ उद्देसओ समत्तो / 336. निष्कर्ष और निर्देश-यह (संखडिविवर्जन रूप पिण्डषणा विवेक) उस भिक्षु या भिक्षुणी (के भिक्षु भाव) की समग्रता-सम्पूर्णता है कि वह समस्त पदार्थों में संयत या समित व ज्ञानादि सहित होकर सदा प्रयत्नशील रहे।' -~- ऐसा मैं कहता.हूँ। // द्वितीय उद्देशक समाप्त // तइओ उद्देसओ तृतीय उद्देशक संखडि-गमन में विविध दोष 340. से एगतिओ अण्णतरं संखोंड असित्ता पिबित्ता छड्डेज्ज' वा, 6 मेज्ज का, भुत्ते वा से णो सम्म परिणमेज्जा, अण्णतरे वा से दुक्खे रोगातके समुप्पज्जेज्जा / केवली बूया-आयाणमेतं। इह खलु भिक्खू गाहावतीहिं वा गाहावतीणोहिं वा परिवायएहि वा परिवाइयाहि वा एगझं सद्धि सोंड पाउं भो वतिमिस्सं हुरत्था वा उत्स्सयं पडिलेहमाणे णो लभेज्जा तमेव उस्सयं सम्मिस्सीभावमावज्जेज्जा, अण्णमणे वा से मत विपरियासियभूते' इथिविग्ग हे या किलीबे वा, तं भिक्षु उवसंकमित्त, बूया-आउसंतो समणा ! अहे आरामंसि वा अहे 1. इसका विवेचन प्रथम उद्देशकवत् समझ लेना चाहिए। 2. 'छडडेज्ज वा बमेज्ज बा' का अर्थ चूर्णिकार ने किया है-छड्डी वोसिरावणिता, वमणं वमणमेव / 3. इसकी व्याख्या चूर्णिकार के शब्दों में--परिवाया कावालियमादी, परिवातियाओ तेसिं चेव भोतियो वासु गिम्हगमादीसु संखडीसु पिबंति, अगारीओ वि माहिस्सरमालवग-उज्जेणीसु एमज्झं एगवत्ता एग. चित्ता वा सद्ध मिलित्ता वा सोंड विगडं चेव पिबंति, पादुः प्रकाशने प्रकाशं पिबति / अर्थात्-परिव्राजक कापालिक आदि और परिब्राजिकाएँ उन्हीं की होती हैं। वे सब वर्षा और ग्रीष्म आदि ऋतुओं में होने वाले संखडियों में मद्य पीती हैं / पादुः प्रकाशन अर्थ में है। यानि प्रगट में पीते हैं। गृहस्थ पलियाँ भी माहेश्वर, मालवा उज्जयिनी आदि में एकचित्त, एक वाक्य होकर साथ में मिलकर मदिरा (विकट) पीती हैं। 4. अण्णमणे की व्याख्या चूर्णिकार करते हैं-अण्णमणो णाम ण संजसमणो अन्यमना का अर्थ है, जो संयतमना न हो। 5. 'विपरियासियभूते' के बदले चूर्णिकार 'विप्परियासभूतो' पाठ मानकर व्याख्या करते हैं-'विप्परिया सभूतो णाम अचेतो'-विपरियासभूतो का मतलब है-- अचेत-मूछित, बेभान For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International