________________ सूत्रांक 65-65 प्रमाद-परिवर्जन पृष्ठ 43.44 44-45 द्वितीय प्रदेश प्रात्महित की साधना 45-46 46-47 47-49 49-50 50-52 52-55 55-56 56-57 57-58 58 प्ररति एवं लोभ का त्याग 71 लोभ पर प्रलोभ से विजय 72-74 अर्थलोभी की बत्ति तृतीय उद्देशक गोत्रवाद निरसन 76-78 प्रमाद एवं परिग्रहजन्य दोष 79-80 परिग्रह से दुःखवृद्धि चतुर्थ उद्देशक 81-82 काम-भोगजन्य पौड़ा 83-84 प्रासक्ति ही शल्य है 85 विषय महामोह भिक्षाचरी में समभाव पंचम उद्देशक 87-88 शुद्ध आहार की एषणा वस्त्र-पात्र-माहार-संयम 90-91 काम-भोग-विरति 92-93 देह की असारता का बोध 94 सदोष-चिकित्सा-निषेध षष्ठ उद्देशक 95-97 सर्व अवत-विरति 98-99 अरति-रति-विवेक 100-101 बंध-मोक्ष परिज्ञान 102-105 उपदेश-कौशल शीतोष्णीय : तृतीय अध्ययन (4 उद्देशक) पृष्ठ 85 से 118 प्रथम उद्देशक सुप्त-जाग्रत 107 अरति रति-त्याग 108-109 अप्रमत्तता 110-111 लोकसंज्ञा का त्याग द्वितीय उद्देशक 112-117 बंध-मोक्ष-परिज्ञान असंयत की व्याकुल चित्तवृत्ति 119-121 संयम में समुत्थान तृतीय उद्देशक 122-124 समता-दर्शन 59-62 62-64 65-67 67-70 70-71 71-74 74-76 76-78 78-82 85-86 87-89 89-92 92-94 94-101 101-102 102-105 105-110 [44 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org