________________ 3. चूर्णिगत प्राचीन पाठों का मूल रूप में उल्लेख तथा सर्वसाधारण पाठक उसका अर्थ समझ सके, तदर्थ प्रथम बार हिंदी भावार्थ के साथ टिप्पण में अंकित किया है। 4. पारिभाषिक तथा सांस्कृतिक शब्दों का-शब्दकोष की दृष्टि से अर्थ, तथा अन्य आगमों के संदर्भो के साथ उनके अर्थ की संगति, विषय का विशदीकरण, एवं चूर्णि-भाष्य आदि के आलोक में उनकी प्रासंगिक विवेचना। 5. बौद्ध एवं वैदिक परम्परा के ग्रन्थों के साथ अनेक समान आचारादि विषयों की तुलना। 6. इन सबके साथ ही भावानुसारी अनुवाद, सारग्राही विवेचन, विषय-विशदीकरण, शंका-समाधान आदि / 7. कठिन व दुर्बोध शब्दों का विशेष भावलक्ष्यी अर्थ / -~-यथासंभव, यथाशक्य प्रयत्न रहा है कि पाठ व अनुवाद में अशुद्धि, अर्थ-विपर्यय न रहे, फिर भी प्रमादवश होना संभव है, अतः सम्पूर्ण शुद्धता व समग्रता का दावा करना तो उचित नहीं लगता, पर विज्ञ पाठकों से नम्र निवेदन अवश्य करूंगा कि वे मित्र-बुद्धि से भूलों का संशोधन करें व मुझे भी सूचित करके अनुग्रहीत करें। आगमों का अनुवाद-संपादन प्रारम्भ करते समय मेरे मन में कुछ भिन्न कल्पना थी, किन्तु कार्य प्रारम्भ करने के बाद कुछ भिन्न ही अनुभव हुए। ऐसा लगता है कि आगमसिर्फ धर्म व आचार ग्रन्थ ही नहीं है, किन्तु नीति, व्यवहार, संस्कृति, इतिहास और लोक-कला के अमूल्य रहस्य भी इनमें छुपे हैं, जिनका ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में सर्वांगीण अध्ययन अनुशीलन करने के लिए बहुत समय, विशाल अध्ययन और विस्तृत साधनों की अपेक्षा है / पूज्यपाद श्रुत-विशारद युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी महाराज की बलवती प्रेरणा, वात्सल्य भरा उत्साहवर्धन, मार्गदर्शन तथा पंडितवर्य श्रीयुत शोभाचन्द्र जी भारिल्ल का निर्देशन, पिता तुल्य स्नेह संशोधन-परिवर्धन की दृष्टि से बहुमूल्य परामर्श-इस संपादन के हर पृष्ठ पर अंकित हैं—इस अनुग्रह के प्रति आभार व्यक्त करना तो बहुत साधारण बात होगी। मैं हृदय से चाहता हूं कि यह सौभाग्य भविष्य में भी इसी प्रकार प्राप्त होता रहे / मुझे विश्वास है कि सुज्ञ पाठक मेरे इस प्रथम प्रयास का जिज्ञासुबुद्धि से मूल्यांकन करेंगे व आगम स्वाध्याय-अनुशीलन की परम्परा को पुनर्जीवित करने में अग्रणी बनेंगे। भाद्रपद पर्युषण प्रथम दिन -विनीत श्रीचन्द सुराना 'सरस' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org