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________________ 11. शब्द सप्तिका-- शब्दादिविषयों में राग-द्वेष रहित रहने का उपदेश / 10. रूप सप्तिका-- रूपादि विषय में राग-द्वेष रहित रहने का उपदेश / 13. परक्रिया सप्तिका- दूसरों द्वारा की जाने वाली सेवा आदि क्रियाओं का निषेध। 14. अन्योन्यक्रिया सप्तिका-- परस्पर की जानेवाली क्रियाओं में विवेक / तृतीय चूला का एक अध्ययन--भावना है। 15. भावना-इसमें भगवान महावीर के उदात्त चरित्र का संक्षेप में वर्णन है। आचार्यों के अनसार प्रथम श्र तस्कंध में वर्णित आचार का पालन किसने किया-इसो प्रश्न का उत्तररूप भगवदचरित्र है। इसी अध्ययन में पांच महाब्रतों की 25 भावना का वर्णन भी है। 16. विमुक्ति-चतुर्थ चूलिका में सिर्फ ग्यारह गाथाओं का एक अध्ययन है / इसमें विमुक्त वीतराग आत्मा का वर्णन है। आन्तरिक परिचय : आचार चला में वर्णित मुख्य विषयों की सूची यहाँ दी गई है। विस्तार से अध्ययन करने पर यह सिर्फ श्रमणाचार का एक आगम ही नहीं, किंतु तत्कालीन जन जीवन की रीतिरिवाज, मर्यादाएं, स्थितियाँ, कला, राजनीति आदि की विरल झांकी भी इससे मिलती हैं। बौद्धग्रन्थ 'विनयपिटक' तथा वैदिकधर्मग्रन्थ-'याज्ञवल्क्यस्मृति' आदि में भी इसी प्रकार के आचार विधान हैं, जो तत्कालीन गृहत्यागी-श्रमण-भिक्षु वर्ग के आचारपक्ष को स्पष्ट करते हैं। भिक्षु के वस्त्र-पात्र की मर्यादाएं बौद्ध, वैदिक मर्यादाओं के साथ कितनी मिलती-जुलती हैं यह तीनों के तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है, हमने यथास्थान प्रकरणों में तुलनात्मक टिप्पण देकर इसे स्पष्ट करने का प्रयल किया है / ‘इन्दमह'--'भूतमह'--'यक्षमह' आदि लौकिक महोत्सवों का वर्णन, तत्कालीन जनता के धार्मिक व सांस्कृतिक रीति-रिवाजों की अच्छी झलक देते हैं / इसीप्रकार वस्त्रों के वर्णन में तत्कालीन वस्त्र-निर्माण कला का बहुत ही आश्चर्यकारी कलात्मक रूप सामने आता है। संखडि, नौकारोहण, मार्ग में चोर-लुटेरों आदि के उपद्रव; वैराज्य-प्रकरण आदि के वर्णन से भी तत्कालीन श्रमण-जीवन की अनेक कठिन समस्याओं व राजनीतिक घटनाचक्रों का चित्र सामने आ जाता है। प्रस्तुत वर्णन के साथ-साथ हमने निशीथचूणि-भाष्य एवं वृहत्कल्पभाष्यके वर्णन का सहारा लेकर विस्तार पूर्वक उन स्थितियों का स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है, पाठक उन्हें यथास्थान देखें। प्रस्तुत संपादन : आचारांग सूत्र के प्रथम श्रु तस्कंध पर अब तक अनेक विद्वानों ने व्याख्याएँ लिखी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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