________________ पाश्चात्य विद्वान् शुब्रिग ने अपने सम्पादित प्राचारांग में प्राचारांग के वाक्यों की तुलना धम्मपद और सुत्तनिपात से की है। मुनि सन्तबालजी ने आचारांग की तुलना श्रीमद्गीता के साथ की है। विशेष जिज्ञासुओं को वे अन्य देखने चाहिये / हमने यहाँ पर केवल संकेत मात्र किया है / व्याख्या साहित्य प्राचारांग के गम्भीर रहस्य को स्पष्ट करने के लिए समय-समय पर व्याख्या साहित्य का निर्माण हुपा है / उस प्रागमिक व्याख्या साहित्य को हम पांच भागों में विभक्त कर सकते हैं। (1) नियुक्तियां (2) भाष्य (3) चूणियां (4) संस्कृत टीकाएँ (5) लोकभाषा में लिखित व्याख्या साहित्य नियुक्ति जैन आगम साहित्य पर प्राकृत भाषा में जो पद्य-बद्ध टीकाएँ लिखी गई, वे नियुक्तियों के नाम से प्रसिद्ध हैं / नियुक्तियों में प्रत्येक पद पर व्याख्या न कर मुख्य रूप से पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या की है-नियुक्ति की व्याख्या-शैली निक्षेप-पद्धतिमय है। निक्षेप-पद्धति में किसी एक पद के संभावित अनेक अर्थ कहने के पश्चात् उनमें से अप्रस्तुत अर्थ का निषेध कर प्रस्तुत अर्थ को ग्रहण किया जाता है। यह शैली न्यायशास्त्र में प्रशस्त मानी जाती है। भद्रबाहु ने नियुक्तियों का निर्माण किया। नियुक्तियां सूत्र और अर्थ का निश्चित अर्थ बताने वाली व्याख्या है / निश्चय से अर्थ का प्रतिपादन करने वाली युक्ति नियुक्ति है। ___ जर्मन विद्वान् शारपेन्टियर ने नियुक्ति को परिभाषा करते हुए लिखा है कि नियुक्तियां अपने प्रधान भाग के केवल इंडेक्स का काम करती हैं। वे सभी विस्तार युक्त घटनावलियों का संक्षेप में उल्लेख करती हैं। डाक्टर घाटके ने नियुक्तियों को तीन भागों में विभक्त किया है (1) मूल नियुक्तियां; जिसमें काल के प्रभाव से कुछ भी मिश्रण न हुआ हो, जैसे प्राचारांग और सूत्रकृतांग की नियुक्तियाँ / (2) जिनमें मूल भाष्यों का संमिश्रण हो गया है, तथापि वे व्यवच्छेद्य हैं, जैसे दशवकालिक और आवश्यक सूत्र प्रादि की नियुक्तियाँ / (3) वे नियुक्तियाँ, जिन्हें प्राजकल भाष्य या बृहद्भाष्य कहते हैं। जिनमें मूल और भाष्य में इतना संमिश्रण हो गया है कि उन दोनों को पृथक-पृथक् नहीं कर सकते, जैसे निशीथ प्रादि की नियुक्तियां / यह वर्गीकरण वर्तमान में जो नियुक्ति साहित्य उपलब्ध है, उसके आधार से किया गया है। जैसे वैदिक-परम्परा में महर्षि व्यास ने वैदिक पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या रूप निघण्टु भाष्य रूप में निरुक्त लिखा वैसे, ही जैन पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या के लिए प्राचार्य भद्रबाहु ने नियुक्तियां लिखीं / आगम प्रभावक मुनिश्री पुण्यविजयजी का अभिमत है कि श्रुतकेवली भद्रबाहु ने नियुक्तियाँ लिखीं। उसके पश्चात् गोविन्द-वाचक जैसे प्राचार्यों ने नियुक्तियाँ लिखीं। उन सभी नियुक्ति गाथानों का संग्रह कर तथा अपनी ओर से कुछ नवीन गाथा बनाकर द्वितीय भद्रबाहु ने नियुक्तियों को व्यवस्थित रूप दिया ! यह सत्य है कि नियुक्तियों की परम्परा आगम-काल में भी थी। 'संखेज्जानो निज्जुत्तीनो' यह पाठ उपलब्ध होता है / उन्हीं मूल नियुक्तियों को प्राधार बनाकर द्वितीय भद्रबाहु ने उसे अन्तिम रूप दिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org