________________ नवम अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र 281-284 321 282. संबुज्नमाणे पुनरवि आसिसु भगवं उट्ठाए / गिसम्म एगया राओ बहिं चंकमिया' मुहुत्तागं // 69 // 2810 भगवान निद्रा भी बहुत नह लेते थे, / (निद्रा आने लगती तो) वे खड़े होकर अपने पापको जगा लेते थे। (चिरजागरण के बाद शरीर धारणार्थ कमी जरा-सी नींद ले ले थे / किन्तु सोने के अभिप्राय से नहीं सोते थे। / / 6 / / ) 282. भगवान क्षण भर की निद्रा के बाद फिर जागृत होकर (संयमोत्थान से उठकर) ध्यान में बैठ जा थे। कमो-कमो (शोतकाल की) रात में (निद्रा प्रमाद मिटाने के लिए) मुहूर्त भर बाहर घूमकर (पुनः अपने स्थान पर पाकर ध्यान-लीन हो जाते थे) / / 69 / / विविध उपसर्ग 283. सयणेहि तस्सुवसम्गा' भीमा आसी अणेगरूवा य / संसप्पगा य जे पाणा अदुवा पक्खिणो उवचरंति // 7 // 284. अदु कुचरा उवधरंति गामरक्खा य सत्तिहत्था य / अदु गामिया उत्सग्गा इत्थी एगतिया पुरिसा य / / 71 // 283. उन ग्रावास-स्थानों में भगवान को अनेक प्रकार के भयंकर उपसर्ग पाते थे। (वे ध्यान में रहते, तब) कभी सांप और नेवला आदि प्राणी काट खाते, कभी गिद्ध आदि पक्षी पाकर मांस नोचते / / 7 / / 284. अथवा कभी (शून्य गह में ठहरते तो उन्हें चोर या पारदारिक (बभिचारी पुरुष) आकर तंग करते, अथवा कभी हाथ में शस्त्र लिए हुए ग्रामरक्षक (पहरे दार) या कोतवाल उन्हें कष्ट देते, कभी कामासक्त स्त्रियाँ और कभी पुरुष उपसर्ग देते थे !!71. तथा बिदा विण पगामा आसो तहेव उठाए'--अर्थ-भगवान ने (खड़े होकर) माढ रूप से निद्रा का सेवन नहीं किया। भगवान की निद्रा अत्यन्त नहीं थी, तथैव वे खड़े हो जाते थे। 5. इस पंक्ति का अर्थ चूणिकार ने किया है-'जम्माइतमा अप्पागं माग' भगवान ने अपनी आत्मा को धान से. जागृत कर लिया था। चणिकार ने इसके बदले 'ईसि सतितास' पाठान्तर मानकर अर्थ किया है-इत्तरकालं णिमेस उम्मेसमेत व (प) लमित्तं वा ईसि सइतवा पासी अपडिण्णो।' -अर्थात् ईषत् का अर्थ है -थोड़े काल तक, निमेष-उन्मेषमात्र या पलमात्र काल / भगवान सोये थे। वे निद्रा की प्रतिज्ञा से रहित थे। 1. इसके बदले 'संबुज्ममाणे पुणरावि'... पाठान्तर मानकर चूणिकार ने तात्पर्य बताया है.-'....ण परि. सेहाते, पसायति, णि दापमाद दिरं करोति' निद्रा आने लगती तो वे उसका निषेध नहीं करते थे, न अत्यन्त ध्यान करते थे और न ही चिरकाल तक निद्रा-प्रमाद करते थे। 2. इसके बदले 'परकमिया कमिया, कमित, चक्कमित्त आदि पाठान्तर मिलते हैं। अर्थ एक-सा है। 3. 'तस्स' का तात्पर्य चूगिकार ने लिखा है--'तस्स छउमस्थकाले अरुहतो ....' छद्मस्थ अवस्था में आरूढ उन भगवान के.... / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org