________________ माधारांग सूत्र–प्रथम श्रुतस्कन्ध अनशन साधक स्वयं को पासवों से शरीरादि तथा राग-द्वेष-कषायादि से बिलकुल मुक्त समझे। जीवन के अन्त तक शुभ अध्यवसायों में लीन रहे / ' इंगितमरणरूप विमोक्ष और यह इंगितमरण पूर्वगृहीत (भक्तप्रत्याख्यान) से विशिष्टतर है। इसे विशिष्ट ज्ञानी (कम से कम नौ पूर्व का ज्ञाता गीतार्थ) संयमी मुनि ही प्राप्त कर सकता है। गितमरणरूप विमोक्ष 240. अयं से अवरे धम्मै गायपुत्तेण साहिते / आयवम् परियारं विनहेज्ना तिघा सिधा // 27 // 241. हरिएसुण णिवज्जेज्जा थंडिलं मुणिमा सए। विउसिज्ज अगाहारो पुट्ठो तस्थऽषियासए // 28 // 242. इंविएहि गिलायंतो समियं साहरे मुगी / तहावि से अगरहे अचले जे समाहिए // 29 // 243. अभिक्कमे पडिक्कमे संकुचए पसारए / कायसाहारणट्टाए एत्थं वा वि अचेतणं // 30 // 244. परिक्कमे परिकिलते अदुवा चिट्टे अहायते / ठाणेग परिकिलते णिसीएम य अंतसो।। 31 / / 245. आसीणेऽणेलिसं' मरणं इंदियाणि समीरते। कोलावासं समासन्ज वितहं पादुरेसए // 32 // 246. जतो बजज समुपज्जे ण तत्थ अवलंबए / ततो उक्कसे अप्पाणं सब्वे फासेऽधियासए / / 33 / / 240. ज्ञात-पुत्र भगवान महावीर ने भक्त प्रत्याख्यान से भिन्न इंगितमरण 1. प्राचा• शीला० टीका पर्वाक 391 के आधार पर / 2. 'मुणिआसए' के बदले चूणि में 'मुगो आसए' पाठ है, अर्थ किया गया है. मुणी पुश्वभणितो, मासीत आसए / अर्थात्-पूर्वोक्त मुनि (स्थण्डिलभूमि पर) बैठे। 3. "विरसिज्म' के बदले वियोसज्ज, वियोसेज्न, विउसेज, विउसन, विमोसिन आदि पाठान्तर मिलते है, अर्थ प्रायः एक-समान है। 4. इसके बदले चूणिकर ने 'समितं साहरे मुणी' पाठ मानकर अर्थ किया है-"संकुडितो परिकिलंतो वा ताहे सम्म पसारे, पंसारिय विलंतो वा पमज्जित्ता साहरइ / " इन्द्रियों (हाथ पैर आदि) को सिकोड़ने में ग्लानि-बेचैनी हो तो उन्हें सम्यकप (ठीक तरह) से पसार ले। पसारने पर भी पीड़ा होती हो तो उनका प्रमार्जन करके समेट ले / 5. चर्णिकार ने इसके बदले 'आसीनेमणेलिसं पाठ मान्य करके अर्थ किया है-"प्रासीण इति उदासीणों अहवा धम्म अस्सितो।"--- अर्थात् मासीन यानी उदासीन अथवा धर्म के आश्रित / 6. 'पादुज्जोहते' पाठान्तर मान्य करके चूणिकार ने अर्थ किया है-- "पादु पकास अवट्ठिल, सं ... एमति -अर्थात्-प्रादुः का अर्थ है प्रक्ट (प्रकाश) में अवस्थित, उसकी एषणा करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org