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________________ गष्टम अध्ययन : अटम उद्देशक : सूत्र 230-239 प्रोत भिक्षु को अपने लिए इन में से यथायोग्य एक ही समाधिमरण का चुनाव करके समाधिपूर्वक उसका अनुपालन करना चाहिए।' भक्तप्रेत्याख्यान अनशन तथा संलेखना विधि 230. दुविहर पिविदित्ता णं बुद्धा धम्मस्स पारगा। __अणुपुथ्वोए संखाए आरंभाए तिउट्टति // 17 // 231. कसाए पयणुए किच्चा अप्पाहारो तितिक्खए। अह भिक्खू गिलाएज्जा आहारस्सेव' अंतिये // 18 // 232, जीवियं णाभिकखेज्जा मरणं णो विपत्थए / दुहतो वि प सज्जेज्जा जीविते मरणे तहा // 19 // 233. मज्मथो णिज्जरापेही समाहिमणुपालए। अंतों बहि थियोसज्ज अज्झत्थं सुद्धमेस ए // 20 // 234. जं किंचुवक्कम जाणे आउखेमस्स अप्पणो / तस्लेव अंतरद्धाए खिप्पं सिक्खेज्ज पंडिते // 21 // 235. गामे अदुवा रणे थंडिलं पडिलेहिया। अप्पपाणं तु विण्णाय तणाई संथरे मुणी // 22 // 236. अणाहारो तुवट्टज्जा पुट्ठो तत्थ हियासए। जातिवेलं उवचेरे माणस्सेहि वि पुट्ठवं / / 23 / / 237. संसप्पगा य जे पाणा जे ये उमदेवरा। भुजते मंससोणियं ण छणे म पमज्जए // 24 // 238. पाणा देहं विहिसंति ठाणातो ण वि उम्भमे। आसवेहिं विवित्त हि तिप्पमाणोऽषियासए // 25 // 239. गंथेहि विवितहि आयुकालस्स पारए / पग्महीसप्तरगं चेतं दवियस्स वियाणसो // 26 // 230. ये धर्म के पारगामी प्रबुद्ध भिक्षु दोनों प्रकार से (शरीर उपकरण आदि बाह्म पदार्थों तथा रागादि अान्तरिक विकारों की) हेयता का अनुभव करके 1. आधाशीला टीका पत्रोक 28 / 2. इसके बदले चूणि में पाठान्तर मिलता है - दुविहं पि विगिचित्ता बुद्धा'-प्रबुद्ध साधक दोनों प्रकार से विशिष्ट रूप से विश्लेषण करके...। 3. इसके बदले चूर्णिकार मान्य पाठान्तर है- 'कम्मुणा य तिउति' अन्य भी पाठान्तर है-कम्मुणामी तिउट्टति, अर्थात् - कर्म से अलग हो जाता है-सम्बन्ध टूट जाता है। 4. तितिखए' के बदले पूणि में 'तिउति' पाठ है। अर्थ होता है-कर्मों को तोड़ता है। 5. इसके बदले चूणि में पाठअन्तर है --'आहारस्से व कारणा' / अर्थ होता है—ाहार के कारण ही भिक्षु ग्लान हो जाए तो......... - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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