________________ 211 अष्टम अध्ययन : अष्टम उद्देशक :वत्र 229 पादपोपगमन में विशेषतया तीन बातों का प्रत्याख्यान (त्याग) अनिवार्य होता है(१) शरीर, (2) शरीरगत योग- पाकुञ्चन , प्रसारण, उन्मेष आदि काय न्यापार और (3) ईर्या-वाणीगत सूक्ष्म तथा अप्रशस्त हलन चलन / ' इसका माहात्म्य भी इंगितमरण की तरह बताया गया है। शरीर-विमोक्ष में प्रायोपगमन प्रबल सहायक है। . // सातवां उद्देशक समाप्त / / अट्ठमो उद्देसओ अष्टम उद्देशक मानुपूर्वो-अनशन 229. अणुपुट्वेण विमोहाइं जाई धीरा समासज्ज / वसुमंतो मतिमंतो सध्वं णच्या अणेलिसं // 16 // 229. जो (भक्तप्रत्याख्यान, इंगितमरण एवं प्रायोपगमन, ये तीन) विमोह या विमोक्ष क्रमशः (समाधिमरण के रूप में बताए गए) हैं, धर्यवान्. संयम का धनी (वसुमान् ) एवं हेयोपादेय-परिज्ञाता (मतिमाम् ) भिक्षु उनको प्राप्त करके (उनके सम्बन्ध में). सब कुछ जानकर (उनमें से) एक अद्वितीय (समाधिमरण को अपनाए)। विवेचन-अमरान का आन्तरिक विधि-विधान : पूर्व उद्देशकों में जिन तीन समाधिमरण रूप अनशनों का निरूपण किया गया है, उन्हीं के विशेष प्रान्तरिक विधि-विधानों के सम्बन्ध में आठवें उद्देशक में क्रमश: वर्णन किया है।' ____ 'अणुपुवेरण विमोहाई'-इस पंक्ति के द्वारा शास्त्रकार ने दो प्रकार के अनशनों की ओर इंगित कर दिया है, वे हैं-(१) सविचार और (2) मविचार। इन्हें ही दूसरे शब्दों में 1. भाचा. शीला टीका पत्रोक 289 / 2. इसके बदले पाठान्तर है----जाणि बीरा समासज-जिन्हें वीर प्राप्त करके........ 3. 'वसुमंतो के पहले चूर्णिकार ने 'बुसीमंतो' पाठ मानकर अर्थ किया है-- संजमो वुसी, सौ जत्थ अत्वि, जत्थ वा विज्जति सो दुसिमा,....बुसिमं च सिमंतो / ....अर्थात्-चुसी(वृषि) संयम को कहते हैं, जहाँ वषि है या जिसमें वृषि संयम है, वह वृषिमान कहलाता है, उसके बहुवचन का रूप है-- वुसीमंतो। 4. आचा० शीला टीका पत्रोक 289 / / 5. विचरणं नानागमनं विचार: विचारेण सह वर्तते इति सविचार-विचरण - नाना प्रकार के संचरण ___ से युक्त जो अनशन किया जाता है, वह सविचार अनशन होता है, यह अनागाढ़, सहसा अनुपस्थित और चिरकालभावी मरण भी कहलाता है। इसके विपरीत अनशन (समाधिभरण) अविचार कहलाता -भगवती पाराधना वि० 64/192/6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org