________________ सम्बन्ध में भी कही जा सकती है ! मैं चाहूँगा कि आगम के मूर्धन्य मनीषी गण इस सम्बन्ध में प्रमाण पुरस्सर तर्कयुक्त समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास करें। यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि समवायांग और नन्दी सत्र में प्राचारांग की जो अठारह हजार पद-संख्या बताई है वह केवल प्रथम श्रुतस्कन्ध के नव ब्रह्मचर्य अध्ययनों की है, यह बात प्राचार्य भद्रबाहु और अभयदेवसरि ने पूर्ण रूप से स्पष्ट की है। यह हम पूर्व में सूचित कर चुके हैं कि महापरिज्ञा अध्ययन चाणकार के पश्चात विच्छिन्न हो गया है। यह सत्य है कि प्राचार्य शीलांक के पहले उसका विच्छेद हा है। ऐसी अनथति है कि महापरिज्ञा प्रध्ययन में ऐसे अनेक चामत्कारिक मन्त्र आदि विद्य थीं जिसके कारण गम्भीर पात्र के प्रभाव में उसका पठन-पाठन बन्द कर दिया गया। पर, श्रति के पीछे ऐतिहासिक प्रबल-प्रमाण का प्रभाव है। नियुक्तिकार का ऐसा अभिमत है कि प्राच चला के सातों अध्ययन महापरिज्ञा के सात उद्देशकों से निर्यढ किये गये हैं। इससे यह स्पष्ट है कि महापरिज्ञा में जिन विषयों पर चिन्तन किया गया उन्हीं विषयों पर साप्तों अध्ययनों में चिन्तन-नियूंढ किया गया हो / मनीषियों का ऐसा भी मानना है कि महापरिज्ञा से उद्धृत सातों अध्ययन पठन-पाठन में व्यवहृत होने लगे तब महापरिज्ञा अध्ययन का पठन-पाठन बन्द हो गया होगा अथवा उसके अध्ययन की प्रावश्यकता ही अनुभव नहीं की जाने लगी होगी। जिससे वह विच्छन्न हुआ / आचारांग के नाम प्राचारांग नियुक्ति में आचारांग के दस पर्यायवाची नाम प्राप्त होते हैं...-- 1. आयार-यह आचरणीय का प्रतिपादन करने वाला है, एतदर्थ प्राचार है। 2. आचाल-यह निविड बंध को आचालित (चलित) करता है, अतः प्राचाल है। 3. आगाल-चेतना को सम धरातल में अवस्थित करता है, अत प्रागाल है। 4. आगर---यह आत्मिक-शुद्धि के रत्नों को पैदा करने वाला है, अतः आगर है / 5. आसास-यह संत्रस्त चेतना को प्राश्वासन प्रदान करने में सक्षम है, अत: आश्वास है / 6. आयरिस-इसमें इतिकर्तव्यता का स्वरूप देख सकते हैं, अतः यह प्रादर्श है। 7. अङ्ग-यह अन्तस्तल में अहिंसा आदि जो भाव रहे हुए हैं, उनको व्यक्त करता है, अत: अंग है। 8. आइण्ण - प्रस्तुत प्रागम में प्राचीर्ण धर्म का निरूपण किया गया है, अत: यह प्राचीर्ण है। 9. आजाइ-इससे ज्ञान प्रादि प्राचारों की प्रसूति होती है, अतः प्राजाति है। 10. आमोक्ख-बन्धन-मुक्ति का यह साधन है, अतः प्रामोक्ष है। नियुक्तिकार भद्रबाहु ने लिखा है कि शिष्यों के अतुग्रहार्थ श्रमणाचार के गुरुतम रहस्यों को स्पष्ट करने के लिये प्राचारांग की चूलाओं का प्राचार में से नि!हण किया गया है। किस-किस अध्ययन को कहाँ-कहां से नियूंढ किया गया है उसका उल्लेख आचारांग चूर्णी में भी पोर आचारांग वृत्ति में भी प्राप्त होता है / वह तालिका इस प्रकार है-- 1. प्राचारांग नियुक्ति गाथा-२९० 2. प्राचारांग नियुक्ति गाथा 7 / 3. प्राचारांग नियुक्ति गाथा 7 से 10 तक 4. आचारांग चूर्णी सूत्र 87, 88, 89, 240, 162, 196, 102 5. प्राचारांग वृत्ति पृष्ठ 319 से 320 तक / [291 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org