________________ अष्टम अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र 207-201 255 सवचस्क या सवयस्क (मित्र) समझ कर कहे। इसका एक अर्थ यह भी है कि भिक्षु उस गृहस्थ को सम्मान सहित, सुवचनपूर्वक निषेध करे।' समनोश-समनोज्ञ आहार बान विधि-निषेध 207. से समणुण्णे असमणुण्णस्स असणं वा 4 वत्थं वा 4 णो पाएज्जा जो णिमंतेज्जा णो कुज्जा वेयावड़ियं परं आढायमाणे ति बेमि / / 208. धम्ममायाणह पवेदितं माहगंण मतिमत्ता- समणुप्णे समणुष्णरस असणं' या 4 वत्थं वा 4 पाएज्जा णिमंतेजा कुज्जा वेयावडियं परं आढायमाणे ति बेमि / ॥बोओ उद्देसओ सम्मत्तो।। 207. वह समनोज्ञ मुनि असमनोज्ञ साधु को प्रशन-पान आदि तथा वस्त्र-पात्र आदि पदार्थ अत्यन्त प्रादरपूर्वक न दे, न उन्हें देने के लिए निमन्त्रित करे और न ही उनका वैयावृत्य करे / —ऐसा मैं कहता हूँ। 208. मतिमान् (केवलज्ञानी) महामाहन श्री वर्द्धमान स्वामी द्वारा प्रतिपादित धर्म (प्राचारधर्म) को भली-भांति समझ लो---कि समनोज्ञ साधु समनोज्ञ साधु को आदरपूर्वक अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादपोंछन प्रादि दे, उन्हें देने के लिए मनुहार करे, उनका वैयावृत्य करे। --ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन--कहाँ निषेध, कहाँ विधान ? ---सूत्र 206 तक अकल्पनीय आहारादि लेने का निषेध किया गया है / 207 सूत्र में असमनोज्ञ को समनोज्ञ साधु द्वारा आहारादि देने, उनके लिए निमन्त्रित करने और उनकी सेवा करने का निषेध किया है, जबकि 208 में समनोज्ञ साधुओं को समनोज्ञ साधु द्वारा उपयुक्त वस्तुएँ देने का विधान है।" // द्वितीय उद्देशक समाप्त // तईओ उद्देसओ - तृतीय उद्देशक गृहवास-विमोक्ष 209. मजिामेणं वयसा वि एगे संबुज्यमाणा समुट्ठित्ता सोच्चा वयं मेधावी पडियाण णिसामिया / समियाए धम्मे आरिएहि पवेदिते। 1. आचा० टीका पत्रांक 271, (ख) प्राचा० चूणि, मूल पाठ के टिप्पण / 2.-3. यहाँ दोनों जगह शेष पाठ 199 सूत्रानुसार पढ़ें। 4.-5. यहाँ दोनों जगह शेष पाठ 199 सूत्रानुसार पढें। 6. आचा: शीला टोका० पत्रोंक 273 / 7. 'मेरा धावति मेहावी, मेहावीणं वयणं महाविश्यमं, वा मेहादी सोच्चा तित्थगरवयणं ...... पंडिएहिं गणहरेहिं ता सुत्तीकयं सोचा 'णिसम्म हियए करित्ता'-णिकारकृत इस व्याख्या का अर्थ है जो मर्यादा में चलता है वह मेधावी है, मेधावियों के वचन मेधाविवचन अथवा मेधावी तीर्थ र वचन . सुनकर तथा पण्डितों-गणधरों द्वारा सूत्ररूप में निबद्ध वचन सुनकर तथा हृदयंगम करके / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org