________________ अष्ठम अध्ययन : प्रथम उद्देशक : सूत्र 201-202 241 - प्रस्तुत सूत्र के पूर्वार्ध में तथाकथित साधुओं के अहिंसा, सत्य एवं अचौर्य आदि प्राचार में विषमता और शिथिलता बताई है, जबकि उत्तरार्ध में असमनोज्ञ साधुओं की एकान्त एवं विरुद्ध श्रद्धा-प्ररूपणा की झांकी दी गयी है।' __एकान्त एवं विरुद्ध श्रद्धा-प्रल्पणा के विषय-असमनोज्ञ साधुओं को एकान्त श्रद्धा-प्ररूपण (वाद) के 5 विषय यहाँ बताए गए हैं--(१) लोक-परलोक, (2) सुकृत-दुष्कृत, (3) पुष्प-पाप, (4) साधु-असाधु और (5) सिद्धि-प्रसिद्धि (मोक्ष और बंध)। इन सब विषयों में असमनोज्ञों द्वारा एकान्तवाद का आश्रय लेने से बह यथार्थ और सुविहित साधु के लिए उपादेय नहीं होता / वृत्तिकार ने विभिन्न वादियों द्वारा प्ररूपित एकान्तवाद पर पर्याप्त प्रकाश डाला है।' मतिमान माहन प्रवेदित धर्म 201. एवं तेसि णो सुअक्खाते णो सुपण्णत्त धम्मे भवति / से जहेतं भगवया पवेवितं आसुपण्णण जाणया पासया / अदुवा गुत्ती वइगोयरस्स त्ति बेमि / 202. सव्वत्थ संमतं पावं / तमेव उवातिकम्म एस महं विवेगे वियाहिते। गामे अदुवा रण्णे? व गामे व रणे, धम्ममायाणह पवेदितं माहणेण मतिमया / जामा तिणि उदाहिआ जेसु इमे आरिया संबुज्झमाणा समुद्विता, जे णिन्ता पावेहि कम्मेहि मणिदाणा ते वियाहिता। 201. इस प्रकार उन (हेतु-रहित एकान्तवादियों) का धर्म न सु-आख्यात (युक्ति-संगत) होता है और न ही सुप्ररूपित / जिस प्रकार से प्राशुप्रज्ञ (सर्वज्ञ-सर्वदशी) भगवान् महावीर ने इस (अनेकान्त रूप सम्यकवाद) सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है, वह (मुनि) उसी प्रकार से प्ररूपणसम्यग्वाद का निरूपण करे; अथवा वाणी विषयक गुप्ति से (मौन साध कर) रहे / ऐसा मैं कहता हूँ। 202. (वह मुनि उन मतवादियों से कहे-) (आप सबके दर्शनों में प्रारम्भ) पाप (कृत-कारित-अनुमोदित रूप से) सर्वत्र सम्मत (निषिद्ध नहीं) है, (किन्तु मेरे दर्शन में यह सम्मत नहीं है)। मैं उसी (पाप/पापाचरण) का निकट से अतिक्रमण करके (स्थित हूँ) यह मेरा विचेक (असमनुज्ञवाद-विमोक्ष) कहा गया है। धर्म ग्राम में होता है, अथवा अरण्य में ? वह न तो गाँव में होता है, न अरण्य में; उसी (जीवादितत्त्व-परिज्ञान एवं सम्यग आचरण) को धर्म जानो, जो मतिमान् (सर्वपदार्थ परिज्ञानमान्) महामाहन भगवान् ने प्रवेदित किया (बतलाया) है। 1. आचा० शीला० टीका पत्र 265 / 2. प्राचा० शीला० टीका पत्र 265 // .. 3. आचा० शीला० टीका पत्र 265, 266, 267 / 4. मारिया के बदले चूणि में पाठान्तर है-'आयरिया', अर्थ होता है- आचार्य / 5. 'णिवुता' के बदले 'चूणि में पाठ है--णिन्चुग, जिसका अर्थ होता है—निवृत-शान्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org