________________ 'धूत' छठा अध्ययन प्राथमिक * प्राचारांग सूत्र के इस छठे अध्ययन का नाम है- 'धूत' / * 'धूत' शब्द यहाँ विशेष अर्थ में प्रयुक्त हुआ है जिसका अर्थ है प्रकाम्पत व शुद्ध / * वस्त्रादि पर से धूल आदि झाड़कर उसे निर्मल कर देना द्रव्यधूत कहलाता है। भावधूत . वह है, जिससे अष्टविध कर्मों का धूनन (कम्पन, त्याग) होता है।' . अतः त्याग या संयम अर्थ में यहाँ भावधूत शब्द प्रयुक्त है। * वैसे धूत शब्द का प्रयोग विभिन्न शास्त्रों में यत्र-तत्र विभिन्न अर्थों में हुआ है। * धूत नामक अध्ययन का अर्थ हुग्रा-जिसमें विभिन्न पहलुओं से स्वजन, संग, उपकरण आदि विभिन्न पदार्थों के त्याग (धूनन) का प्रतिपादन किया गया है, वह अध्ययन / * धूत अध्ययन का उद्देश्य है-साधक संसारवृक्ष के बीजरूप कर्मों (कर्मबन्धों) के विभिन्न कारणों को जानकर उनका परित्याग करे और कर्मों से सर्वथा मुक्त (अव धूत) बने। * सरल भाषा में 'धूत का अर्थ है-कर्मरज से रहित निर्मल पात्मा अथवा संसार-वासना का त्यागी-अनगार / 1. 'रख्यधुतं वत्यादि, भावधुयं कम्ममढविहं ।'-प्राचा० नियुक्ति गा० 250 / 2. 'धूयतेऽष्टप्रकारं कर्म येन तद धूतम् संयमानुष्ठाने।' ~~-सूत्रकृत् 1 1 0 2 अ०२ (क) 'संयमे, मोक्ष'--सूत्रकृत् 1 श्रु० 7 अ० (ख) अभिधानराजेन्द्रकोष, भाग 4 पृ० 2758 में अपनीत, कम्पित, स्फोटित और क्षिप्त अर्थ में 'धूत' शब्द के प्रयोग बताये हैं / (ग) दशवकालिक सूत्र 3 / 13 में 'धुयमोह'-धुतमोह शब्द का प्रयोग हुआ है / चणिकार अगस्त्यसिंह ने इसका 'विकीर्ण-मोह तथा जिनदासमणी ने 'जितमोह' अर्य किया है। -दसवेप्रालियं पृष्ठ 95 4. 'घृतं संगानां त्यजनम्, तत्प्रतिपादकमध्ययनं धूतम् ।'-स्था० वृत्ति० स्थान 9 5. आचारांग नियुक्ति मा० 251 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org