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________________ आचासंग सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध विगिच मंस-सोणितं। एस पुरिसे दविए वीरे आयाणिज्जे विवाहिते जे धुणाति समुस्सयं वसित्ता संभचेरंसि / 144. णेत्तेहि पलिछिण्णेहि आयाणसोतगढिते बाले अस्वोच्छिण्णबंधणे अणभिक्कंत संजोए। उतमंसि अविजाणओ आणाए लंभो पत्थि सि बेमि / 145. जस्स पत्थि पुरे पच्छा मजो तस्स कुओ सिया ? / से हु पन्नाणमंते बुद्ध आरंभोवरए / सम्ममेतं ति पासहा। जेण बंधं वहं घोरं परितावं च दारुणं / पलिछिदिय बाहिरगं च सोतं णिक्कम्मदंसी इह मच्चिएहि / कम्मुणा सफलं वटुंततो णिज्जाति वेदवी। 146. जे खलु भो वोरा समिता सहिता सदा जता संथडदंसिणो आतोवरता अहा तहा लोग उयेहमाणा पाईगं पडोणं दाहिणं उदीणं इति सच्चंसि परिविचिठिसु / साहिस्सामो णाणं बोराण समिताणं सहिताणं सदा जताणं संथउदंसोणं आतोवरताणं अहा तहा लोगमुवे हमाणाणं। किमस्थि उवाही पासगस्स, ण विज्जति ? गयि त्ति बेमि / ॥चउत्थो उद्देसओ समतो॥ 143. मुनि पूर्व-संयोग (गृहस्थपक्षीय पूर्व-संयोग या अनादिकालीन असंयम के साथ रहे हुए पूर्व सम्बन्ध) का त्यागकर उपशम (कषायों और इन्द्रिय-विषयों का उपशमन) करके (शरीर-कर्मशरीर का) पापीडन करे, फिर प्रपीडन करे और तब निष्पीडन करे। (लप तथा संयम में पीडा होती है) इसलिए मुनि सदा अविमना (–विषयों के प्रति रति, भय, शोक से मुक्त), प्रसन्नमना, स्वारत (-तप-संयमादि में रत), 1. इसके स्थान पर 'आताणिज्जे,' 'आयाणिए,' 'आवाणिओ', आताणिओ'--ये पद कहीं-कहीं मिलते हैं। . 2. 'णेत हि पलिछिणेहि...' का अर्थ चणि में यों किया गया है.--"णयंतीति ताणि चक्खुमादीणि / " जेसि संजतत्त' बव्वणेताणि छिण्णाति आसी, जं भणितं जिताणि, त एव केयि परीसहोदया भावणेसोहि छिन्णेहि, कि ? ससोतेहि मुच्छिता जाव अज्झोक्वग्णा / " नेव-चक्षु आदि हैं। जिस संयमी के द्रव्यनेत्र नष्ट हो गए फिर भी इन्द्रियां जीत लीं, वे ही साधक परिषह के उदय होने पर भाव नेत्रों के सोत (राग-द्वेष रहितता) नष्ट होने पर आसक्त ---विषय-मूच्छित हो जाते हैं। 3. इसके स्थान पर 'तमस्त अवियाणतो...' पाठ है। चूर्णि में अर्थ किया गया है-' ....."एवं तस्स अवियाणतो तत्थ अवाया भवति......' अर्थात् मोहान्धकार के कारण आत्महित न जानने के कारण अनेक अपाय (आपत्तियां) उपस्थित होते हैं। 4. चूणि में पाठ यों है-'एतं च सम्मं पासहा' / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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