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अनुयोगद्वारसूत्र
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यहां नोआगम में प्रयुक्त 'नो' शब्द सर्वथा आगमभाव का निषेधक नहीं है किन्तु एकदेश का निषेधक है। स्कन्धपदार्थ का ज्ञान आगम, उसमें ज्ञाता का उपयोग भाव और रजोहरण आदि द्वारा की जाने वाली प्रमार्जना आदि क्रियायें नोआगम हैं। स्कन्ध के पर्यायवाची नाम ७२. तस्स णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा नामधेज्जा भवंति । तं जहा
गण काय निकाय खंध वग्ग रासी पुंजे य पिंड नियरे य ।
संघाय आकुल समूह भावखंधस्स पज्जाया ॥ ५॥ से तं खंधे । [७२] उस भावस्कन्ध के विविध घोषों एवं व्यंजनों वाले एकार्थक (पर्यायवाची) नाम इस प्रकार हैं
(गाथार्थ) गण, काय, निकाय, स्कन्ध, वर्ग, राशि, पुंज, पिंड, निकर, संघात, आकुल और समूह, ये सभी भावस्कन्ध के पर्याय हैं।
विवेचन- पर्यायवाची शब्दों की व्याख्या इस प्रकार है१. गण- मल्ल आदि गणों की तरह स्कन्ध अनेक परमाणुओं का संश्लिष्ट परिणाम होने से गण
कहलाता है। २. काय— स्कन्ध भी पृथ्वीकायादि की तरह होने से उसे काय कहते हैं। ३. निकाय— षट्जीवनिकाय की तरह यह स्कन्ध भी निकाय रूप है। ४. स्कन्ध— द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी आदि रूप संश्लिष्ट परिणाम वाला होने से स्कन्ध कहलाता है। ५. वर्ग- गोवर्ग की तरह स्कन्ध वर्ग है। ६. राशि– चावल, गेहूं आदि धान्य राशिवत् होने से स्कन्ध का नाम राशि भी है। ७. पुंज— एकत्रित किये गये धान्यपुंजवत् होने से इसे पुंज कहते हैं। ८. पिंड- गुड़ आदि के पिंडवत् होने से पिंड है। ९. निकर- चांदी आदि के समूह की तरह होने से यह निकर है। १०. संघात— महोत्सव आदि में एकत्रित जनसमुदाय की तरह होने से इसका नाम संघात है। ११. आकुल- आंगन आदि में एकत्रित (व्याप्त) जनसमूह जैसा होने से स्कन्ध को आकुल कहते हैं। १२. समूह— नगरादि के जनसमूह की तरह वह समूह है।
इस प्रकार स्कन्धाधिकार का समग्र वर्णन जानना चाहिए। आवश्यक के अर्थाधिकार और अध्ययन ७३. आवस्सगस्स णं इमे अत्थाहिगारा भवंति । तं जहा
सावज्जजोगविरती १ उक्कित्तण २ गुणवओ य पडिवत्ती ३ । खलियस्स निंदणा ४ वणतिगिच्छ ५ गुणधारणा ६ चेव ॥ ६॥
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