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स्कन्धनिरूपण
भी विवक्षित हैं।
मिश्रद्रव्यस्कन्ध से भी यह अनेकद्रव्यस्कन्ध भिन्न है । क्योंकि मिश्रद्रव्यस्कन्ध में तो पृथक्-पृथक् रूप से अवस्थित हस्ती, तलवार आदि को मिश्रस्कन्ध रूप से कहा है, परन्तु इस अनेकद्रव्यस्कन्ध में विशिष्ट परिणाम रूप से परिणत होते हुए अचेतन-अचेतन द्रव्यों के एक समुदाय को अनेक द्रव्यस्कन्ध कहा है।
भावस्कन्ध निरूपण
६९. से किं तं भावखंधे ?
भावखं दुविहे पण्णत्ते । तं जहा— आगमतो य १ नोआगमतो य २ ।
[६९ प्र.] भगवन् ! भावस्कन्ध का क्या स्वरूप है ?
[६९ उ.] आयुष्मन् ! भावस्कन्ध दो प्रकार का कहा है । वह इस तरह — १ . आगमभावस्कन्ध, २ . नोआगम
भावस्कन्धा ।
७०. से किं तं आगमतो भावखंधे ?
आगमतो भावखंधे जाणए उवउत्ते । से तं आगमतो भावखंधे ।
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[ ७० प्र.] भगवन् ! आगमभावस्कन्ध का क्या स्वरूप है ?
[७० उ.] आयुष्मन् ! स्कन्ध पद के अर्थ का उपयोग युक्त ज्ञाता आगमभावस्कन्ध है।
७१. से किं तं नोआगमओ भावखंधे ?
नोआगमओ भावखंधे एएसिं चेव सामाइयमाइयाणं छण्हं अज्झयणाणं समुदयसमिइसमागमेणं निप्फन्ने आवस्सगसुयक्खंधे भावखंधे त्ति लब्भइ । से तं नोआगमतो भावखंधे । से तं भावखंधे ।
[७१ प्र.] भगवन् ! नोआगमभावस्कन्ध का क्या स्वरूप है ?
[७१ उ.] आयुष्मन् ! परस्पर-सम्बन्धित सामायिक आदि छह अध्ययनों के समुदाय के मिलने से निष्पन्न आवश्यक श्रुतस्कन्ध नोआगमभावस्कन्ध कहलाता है।
इस प्रकार से भावस्कन्ध की वक्तव्यता जानना चाहिए ।
विवेचन — इन सूत्रों में भावस्कन्ध का स्वरूप स्पष्ट किया है। इनमें से आगमभावस्कन्ध की व्याख्या तो आगमभावावश्यक प्रतिपादक सूत्र की जैसी जानना चाहिए ।
नोआगमभावस्कन्ध की स्वरूपव्याख्या में 'समुदयसमिइसमागमेणं' पद मुख्य है। इसमें 'समुदयसमिइ' का अर्थ है सामायिक आदि छह अध्ययनों के समूह का अव्यवहित मिलना तथा समागम यानि षट् प्रदेशी स्कन्ध की तरह छह अधिकार वाले आवश्यक श्रुतस्कन्ध का आत्मा में एक रूप होना । अर्थात् लोहशलाकाओं की तरह परस्पर निरपेक्ष सामायिक आदि षट् आवश्यकों के समुदाय समिति - समागम से निष्पन्न आवश्यक श्रुतस्कन्ध का नाम भावस्कन्ध । यही भावस्कन्ध जब मुखवस्त्रिका, रजोहरण आदि की व्यापक रूप क्रिया से विवक्षित किया जाता है तब वह नोआगमभावस्कन्ध है ।