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स्कन्धनिरूपण
[६० उ.] आयुष्मन् ! समय पूर्ण होने पर यथाकाल कोई योनिस्थान से बाहर निकला और वह यावत् भविष्य में 'स्कन्ध' इस पद के अर्थ को सीखेगा (किन्तु अभी नहीं सीख रहा है), उस जीव का शरीर भव्यशरीरद्रव्यस्कन्ध है।
शिष्य- इसका दृष्टान्त ?
आचार्य— दृष्टान्त इस प्रकार है—वर्तमान में मधु या घी नहीं भरा है किन्तु भविष्य में भरा जायेगा ऐसे घड़े के लिए कहना—यह मधुकुंभ है, यह घृतकुंभ है।
इस प्रकार भव्यशरीरद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप जानना चाहिए।
विवेचन— ज्ञायकशरीर एवं भव्यशरीरद्रव्यस्कन्ध की व्याख्या द्रव्यावश्यक की व्याख्या के समान होने से तदनुरूप जानना चाहिए। ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यस्कन्ध
६१. से किं तं जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वखंधे ?
जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वखंधे तिविहे पण्णत्ते । तं जहा–सचित्ते १ अचित्ते २ मीसए ३ ।
[६१ प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है ?
[६१ उ.] आयुष्मन् ! ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यस्कन्ध के तीन प्रकार हैं । वे प्रकार ये हैं— १. सचित्त, २. अचित्त और ३. मिश्र।
विवेचन— सूत्र में उभयव्यतिरिक्तद्रव्यस्कन्ध के एक अपेक्षा से तीन भेद बतलाये हैं। सचित्तद्रव्यस्कन्ध
६२. से किं तं सचित्तदव्वखंधे ?
सचित्तदव्वखंधे अणेगविहे पण्णत्ते । तं जहा हयखंधे गयखंधे किन्नरखंधे किंपुरिसखंधे महोरगखंधे उसभखंधे । से तं सचित्तदव्वखंधे ।
[६२ प्र.] भगवन् ! सचित्तद्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है ?
[६२ उ.] आयुष्मन् ! सचित्तद्रव्यस्कन्ध के अनेक प्रकार हैं। वे इस तरह हय (अश्व) स्कन्ध, गज (हाथी) स्कन्ध, किन्नरस्कन्ध, किंपुरुषस्कन्ध, महोरगस्कन्ध, वृषभ (बैल) स्कन्ध । इस प्रकार यह सचित्तद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप है।
विवेचन- चेतना, संज्ञान, उपयोग, मन और विज्ञान ये सब चित्त के पर्यायवाची नाम हैं। इस चित्त से जो युक्त हो वह सचित्त है। स्कन्ध का अर्थ पूर्व में बताया जा चुका है। यह सचित्तस्कन्ध व्यक्तिभेद की अपेक्षा अनेक प्रकार का है। जो उदाहरण के रूप में दिये गये हयस्कन्ध आदि नामों से स्पष्ट है।
अपौद्गलिक होने से यद्यपि जीव में स्कन्धता घटित नहीं होती है, परन्तु यह ऐकान्तिक नियम नहीं कि पुद्गलप्रचय में ही स्कन्धता मानी जाए। प्रत्येक जीव असंख्यातप्रदेशी है। अतः उन प्रदेशों की समुदाय रूप