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________________ ४२ अनुयोगद्वारसूत्र स्कन्धता उसमें सुप्रतीत ही है। अर्थात् जीव पुद्गलप्रचय रूप नहीं, किन्तु असंख्यात प्रदेशों का समुदाय रूप स्कन्ध है। इसके अतिरिक्त जीव का गृहीत शरीर के साथ अमुक अपेक्षा से अभेद है और सचित्तद्रव्यस्कन्ध का अधिकार होने से यहां उन-उन शरीरों में रहे जीवों में परमार्थतः सचेतनता होने से हयादिकों को स्कन्ध रूप में ग्रहण किया है। यद्यपि सचित्तद्रव्यस्कन्ध की सिद्धि हयस्कन्ध आदि में से किसी एक उदाहरण से हो सकती थी तथापि आत्माद्वैतवाद का निराकरण करने एवं जीवों के भिन्न-भिन्न स्वरूप तथा उनकी अनेकता बताने के लिए उदाहरण रूप में हय आदि पृथक्-पृथक् जीवों के नाम दिये हैं। अद्वैतवाद को स्वीकार करने पर भेदव्यवहार नहीं बनता है। अचित्तद्रव्यस्कन्ध ६३. से किं तं अचित्तदव्वखंधे ? अचित्तदव्वखंधे अणेगविहे पण्णत्ते । तं जहा–दुपएसिए खंधे तिपएसिए खंधे जाव दसपएसिए खंधे संखेजपएसिए खंधे असंखेजपएसिए खंधे अणंतपएसिए खंधे । से तं अचित्तदव्वखंधे । [६३ प्र.] भगवन् ! अचित्तद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप क्या है ? [६३ उ.] आयुष्मन् ! अचित्तद्रव्यस्कन्ध अनेक प्रकार का प्ररूपित किया है। वह इस तरह-द्विप्रदेशिक स्कन्ध, त्रिप्रदेशिक स्कन्ध यावत् दसप्रदेशिक स्कन्ध, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, अनन्तप्रदेशिका स्कन्ध। यह अचित्तद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप है। विवेचन— यहां सूत्रकार ने अचित्तद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप बताया है। दो प्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक जो और जितने भी पुद्गलस्कन्ध हैं वे सब अचित्तद्रव्यस्कन्ध हैं। प्रकृष्टः (पुद्गलास्तिकाय-) देशः प्रदेशः, इस व्युत्पत्ति के अनुसार सबसे अल्प परिमाण वाले पुद्गलास्तिकाय का नाम प्रदेश-परमाणु है। दो आदि अनेक परमाणुओं के मेल से बनने वाले स्कन्धों का मूल परमाणु है। परमाणु में अस्तिकायता इसलिए है कि वह स्कन्धो का उत्पादक है। मिश्रद्रव्यस्कन्ध ६४. से किं तं मीसदव्वखंधे ? मीसदव्वखंधे अणेगविहे पण्णत्ते । तं जहा सेणाए अग्गिमखंधे सेणाए मज्झिमखंधे सेणाए पच्छिमखंधे । से तं मीसदव्वखंधे । [६४ प्र.] भगवन् ! मिश्रद्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है ? [६४ उ.] आयुष्मन् ! मिश्रद्रव्यस्कन्ध अनेक प्रकार का कहा है। यथा सेना का अग्रिम स्कन्ध, सेना का मध्य स्कन्ध, सेना का अंतिम स्कन्ध। यह मिश्रद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप है। विवेचन— सूत्रकार ने मिश्रद्रव्यस्कन्ध के उदाहरण के रूप में सेना का उल्लेख किया है। इसका कारण
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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