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अनुपयुक्त नहीं होता है ।
यह आगमद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप है।
विवेचन — यहां आगमद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप एवं तद्विषयक नय-विवक्षाओं का उल्लेख किया है। इन सबका वर्णन पूर्वोक्त आवश्यक के स्थान पर स्कन्ध पद रखकर आगमद्रव्यआवश्यक की तरह जानना चाहिए । नोआगमद्रव्यस्कन्ध
अनुयोगद्वारसूत्र
५८. से किं तं णोआगमतो दव्वखंधे ?
आगमतो दव्वखंधे तिविहे पण्णत्ते । तं जहा जाणगसरीरदव्वखंधे १ भवियसरीरदव्वखंधे २ जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वखंधे ३ ।
[५८ प्र.] भगवन् ! नोआगमद्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है ?
[५८ उ.] आयुष्मन् ! नोआगमद्रव्यस्कन्ध तीन प्रकार का है। यथा—१. ज्ञायकशरीरद्रव्यस्कन्ध, २. भव्यशरीरद्रव्यस्कन्ध और ३. ज्ञायकशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यस्कन्ध ।
ज्ञायकशरीरद्रव्यस्कन्ध
५९. से किं तं जागणसरीरदव्वखंधे ?
जाण सरदव्वखंधे खंधे इ पयत्थाहिगार जाणगस्स जाव खंधे इ पयं आघवियं पण्णवियं परूवियं जाव से तं जाणगसरीरदव्वखंधे ।
[५९ प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीरद्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है ?
[५९ उ.] आयुष्मन् ! स्कन्धपद के अर्थाधिकार को जानने वाले यावत् जिसने स्कन्ध पद का (गुरु से ) अध्ययन किया था, प्रतिपादन किया था, प्ररूपित किया था, आदि पूर्ववत् समझना चाहिए। यह ज्ञायकशरीरद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप है।
विवेचन — सूत्र में नोआगम-ज्ञायकशरीरद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप बताया है। जिसका विशद अर्थ पूर्वोक ज्ञायकशरीरद्रव्यावश्यक के सदृश जानना चाहिए। मात्र आवश्यक के स्थान पर स्कन्ध शब्द का प्रयोग करना चाहिए ।
सूत्रगत दो 'जाव' पदों द्वारा सूत्र १७ में उल्लिखित पदों को ग्रहण करना चाहिए ।
नोआगम-भव्यशरीरद्रव्यस्कन्ध
६०. से किं तं भवियसरीरदव्वखंधे ?
भवियसरीरदव्वखंधे जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंते जाव खंधे इ पयं सेकाले सिक्खिस्सइ । जहा को दिट्टंतो ? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सति । से तं भवियसरीरव्वखं ।
[६० प्र.] भगवन् ! भव्यशरीरद्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है ?