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स्कन्धनिरूपण
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[५५ उ.] आयुष्मन् ! नाम यावत्कथिक (वस्तु के अस्तित्व रहने तक) होता है परन्तु स्थापना इत्वरिकस्वल्पकालिक और यावत्कथिक दोनों प्रकार की होती है।
विवेचन- ऊपर नाम और स्थापना स्कन्ध का स्वरूप बतलाया है। उनकी विशेष व्याख्या नाम स्थापना आवश्यक के अनुरूप समझ लेनी चाहिए। द्रव्यस्कन्ध
५६. से किं तं दव्वखंधे ? दव्वखंधे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—आगमतो य १ नोआगमतो य २ । [५६ प्र.] भगवन् ! द्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है ? [५६ उ.] आयुष्मन् ! द्रव्यस्कन्ध दो प्रकार का है। यथा—१. आगमद्रव्यस्कन्ध और २. नोआगमद्रव्यस्कन्ध । ५७. (१) से किं तं आगमओ दव्वखंधे ?
आगमओ दव्वखंधे जस्स णं खंधे इ पयं सिक्खियं ठियं जियं मियं जाव णेगमस्स एगे अणुवउत्ते आगमओ एगे दव्वखंधे, दो अणुवउत्ता आगमओ दो (ण्णि) दव्वखंधाइं, तिण्णि अणुवउत्ता आगमओ तिण्णि दव्वखंधाइं, एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाइं ताई दव्वखंधाई ।
[५७ प्र. १] भगवन् ! आगमद्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है ?
[५७ उ. १] आयुष्मन् ! जिसने स्कन्धपद को गुरु से सीखा है, स्थित किया है, जित, मित किया है यावत् नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त आत्मा आगम से एक द्रव्यस्कन्ध है, दो अनुपयुक्त आत्मायें दो, तीन अनुपयुक्त आत्मायें तीन आगमद्रव्यस्कन्ध हैं, इस प्रकार जितनी भी अनुपयुक्त आत्मायें हैं, उतने ही आगमद्रव्यस्कन्ध जानना चाहिए।
(२) एवमेव ववहारस्स वि । २. इसी तरह (नैगमनय की तरह) व्यवहारनय भी आगमद्रव्यस्कन्ध के भेद स्वीकार करता है।
(३) संगहस्स एगो वा अणेगा वा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा दव्वखंधे वा दव्वखंधाणि वा से एगे दव्वखंधे।
३. सामान्यमात्र को ग्रहण करने वाला संग्रहनय एक अनुपयुक्त आत्मा एक द्रव्यस्कन्ध और अनेक अनुपयुक्त आत्मायें अनेक आगमद्रव्यस्कन्ध ऐसा स्वीकार नहीं करता, किन्तु सभी को एक ही आगमद्रव्यस्कन्ध मानता है।
(४) उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगे दव्वखंधे, पुहत्तं णेच्छति । ४. ऋजुसूत्रनय से एक अनुपयुक्त आत्मा एक आगमद्रव्यस्कन्ध है। वह भेदों को स्वीकार नहीं करता है।
(५) तिण्हं सद्दणाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू । कम्हा ? जइ जाणए कहं अणुवउत्ते भवति ? से तं आगमओ दव्वखंधे ।
५. तीनों शब्दनय ज्ञायक यदि अनुपयुक्त हो तो उसे अवस्तु-असत् मानते हैं। क्योंकि जो ज्ञायक है वह