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१०. आचार्य परम्परा में आने अथवा आप्तवचन रूप होने से यह आगम है ।
इस प्रकार श्रुताधिकार के अधिकृत विषयों का विवेचन समाप्त हुआ।
वाणी द्वारा प्रकट किये जाने से यह वचन है ।
उपादेय में प्रवृत्ति और हेय से निवृत्ति का उपदेश (शिक्षा) देने वाला होने से इसे उपदेश कहते हैं ।
जीवादिक पदार्थों के यथार्थ स्वरूप का प्ररूपण करने वाला होने से यह प्रज्ञापना है ।
स्कन्ध-निरूपण के प्रकार
अनुयोगद्वारसूत्र
५२. से किं तं खंधे ?
खंधे चउव्विहे पण्णत्ते । तं जहा— नामखंधे १ ठवणाखंधे २ दव्वखंधे ३ भावखंधे ४ ।
[५२ प्र.] भगवन् ! स्कन्ध का क्या स्वरूप है ?
[५२ उ.] आयुष्मन् ! स्कन्ध के चार प्रकार हैं । वे इस तरह — १. नामस्कन्ध, २. स्थापनास्कन्ध, ३. द्रव्यस्कन्ध, ४. भावस्कन्ध ।
विवेचन — 'खंधं निक्खिविस्सामि' स्कन्ध का निक्षेप करूंगा इस प्रतिज्ञा के अनुसार सूत्र में निक्षेपविधि से स्कन्ध की प्ररूपणा आरम्भ की गई है।
खंधं ( स्कन्ध) का अर्थ है — पुद्गलप्रचय — पुद्गलों का पिंड । समूह समुदाय, कंधा, वृक्ष का धड़ (जहां से शाखायें निकलती हैं) के लिए भी स्कन्ध शब्द का प्रयोग होता है।
नाम-स्थापनास्कन्ध
५३. से किं तं नामखंधे ?
नामखंधे जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जाव खंधे त्ति णामं कज्जति । से तं णामखंधे ।
[५३ प्र.] भगवन् ! नामस्कन्ध का क्या स्वरूप है ?
[५३ उ.] आयुष्मन् ! जिस किसी जीव या अजीव का यावत् स्कन्ध यह नाम रखा जाता है, उसे नामस्कन्ध कहते हैं ।
५४. से किं तं ठवणाखंधे ?
ठवणाखंधे जणं कट्ठकम्मे वा जाव खंधे इ ठवणा ठविज्जति । से तं ठवणाखं ।
[५४ प्र.] भगवन् ! स्थापनास्कन्ध का क्या स्वरूप है ?
[५४ उ.] आयुष्मन् ! काष्ठादि में 'यह स्कन्ध है' इस प्रकार का जो आरोप किया जाता है, वह स्थापनास्कन्ध है।
५५. णाम-ठवणाणं को पतिविसेसो ?
नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा ।
[५५ प्र.] भगवन् ! नाम और स्थापना में क्या अन्तर है ?