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________________ श्रुतनिरूपण सूत्रकृतांग, ३ स्थानांग, ४ समवायांग, ५ व्याख्याप्रज्ञप्ति, ६ ज्ञातृधर्मकथा, ७ उपासकदशांग, ८ अन्तकृद्दशांग, ९ अनुत्तरोपपातिकदशांग, १० प्रश्नव्याकरण, ११ विपाकश्रुत, १२ दृष्टिवाद रूप द्वादशांग, गणिपिटक लोकोत्तरिक नोआगम भावश्रुत हैं। इस प्रकार से नोआगम भावश्रुत का वर्णन पूर्ण हुआ। विवेचन— सूत्र में नोआगम की अपेक्ष लोकोत्तरिक भावश्रुत का स्वरूप बतलाया है। अर्हत् भगवन्तों द्वारा प्रणीत गणिपिटक में उपयोगरूप परिणाम होने से भावश्रुतता है और यह उपयोग रूप परिणाम चरणगुणचारित्रगुण से युक्त है तो वह नोआगम से भावश्रुत है। क्योंकि चरणगुण क्रिया रूप है और क्रिया आगम नहीं होती है। इस प्रकार यहां 'नो' शब्द एकदेशनिषेधक रूप में प्रयुक्त हुआ है। तीर्थंकर भगवन्तों द्वारा अर्थतः प्ररूपित आचार आदि द्वादश अंग गणिपिटक लोकोत्तरिक भावश्रुत हैं। श्रुत के नामान्तर ५१. तस्स णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा नामधेजा भवंति । तं जहा— सुय सुत्त गंथ सिद्धंत सासणे आण वयण उवदेसे । पण्णवण आगमे या एगट्ठा पजवा सुत्ते ॥ ४॥ से तं सुयं । __ [५१] उदात्तादि विविध स्वरों तथा ककारादि अनेक व्यंजनों से युक्त उस श्रुत के एकार्थवाचक (पर्यायवाची) नाम इस प्रकार हैं १. श्रुत, २. सूत्र, ३. ग्रन्थ, ४. सिद्धान्त, ५. शासन, ६. आज्ञा, ७. वचन, ८. उपदेश, ९. प्रज्ञापना, १०. आगम, ये सभी श्रुत के एकार्थक पर्याय हैं। इस प्रकार से श्रुत की वक्तव्यता समाप्त हुई। विवेचन- यहाँ श्रुत के पर्यायवाची नामों को गिनाया है, जिनमें शब्दभेद होने पर भी अर्थभेद नहीं है। क्योंकि १. गुरु के समीप सुने जाने कारण यह श्रुत है। २. अर्थों की सूचना मिलने के कारण इसका नाम सूत्र है। तीर्थंकर रूप कल्पवृक्ष के वचन रूप पुष्पों का ग्रथन होने से इसका नाम ग्रंथ है। ४. प्रमाणसिद्ध अर्थ को प्रकट करने वाला बताने वाला होने से यह सिद्धान्त है। ५. मिथ्यात्वादि से दूर रहने की शिक्षा सीख देने के कारण अथवा मिथ्यात्वी को शासित, संयमित करने वाला होने से यह शासन है। ६. मुक्ति के लिए आज्ञा देने वाला होने से अथवा मोक्षमार्गप्रदर्शक होने से इसे आज्ञा कहते हैं। हारिभद्रीया और मलधारियावृत्ति में शासन के स्थान पर पाठान्तर के रूप में प्रवचन शब्द है। जिसका अर्थ यह है कि प्रशस्त-प्रधान-श्रेष्ठ-प्रथम वचन होने से इसका नाम प्रवचन है-'प्रशस्तं प्रथमं वा वचनं प्रवचनम् ।'
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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