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अनुयोगद्वारसूत्र कोडिल्लयं— कौटिल्यक—चाणक्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र । अथवा कोडिल्ल यानी मुग्दर। अतः मुग्दर आदि शस्त्रों की निर्माणविधि सूचक शास्त्र।
घोडमुहं- घोटमुख, अश्वादि पशुओं का वर्णन करने वाला शास्त्र। सगडभद्दिआ— शकटभद्रिका शकटव्यूह आदि के रूप में सैन्यरचना की विधि बताने वाला शास्त्र। कप्पासिय– कार्पासिक कपास आदि से सूत, कपड़ा आदि बनाने की विधि बताने वाला शास्त्र।
नागसुहुम– नागसूक्ष्म-एक जैनेतर शास्त्र। संभवतः इसमें सर्प आदि विषैले जीव-जन्तुओं का वर्णन किया गया होगा।
कणगसत्तरी- कनकसप्तति—एक प्राचीन जैनेतर शास्त्र । संभव है इसमें सोने आदि धातुओं का अथवा सोने के तार से मिश्रित कपड़ा बनाने की विधि का वर्णन किया गया हो।
वइसेसिय— वैशेषिक, कणाद मुनि द्वारा प्ररूपित दर्शनविशेष—वैशेषिकदर्शन । बुद्धवयण— बुद्धवचन, तथागत बुद्ध द्वारा प्ररूपित दर्शन—बौद्धदर्शन। वेसिय- वैशिक कामशास्त्र, व्यापार-व्यवसाय का शास्त्र। काविल- कापिल, कपिलऋषिरचित दर्शन—सांख्यदर्शन। लोयायय- लोकायत, बृहस्पतिरचित शास्त्र–चार्वाकदर्शन। सट्ठितंत— षष्ठितंत्र—सांख्यदर्शन अथवा धूर्तता सिखाने वाला शास्त्रविशेष। माढर— माठर, शास्त्रविशेष।
बहत्तर कलाओं के नाम समवायांग आदि सूत्रों से जान लेना चाहिए। सामवेद, ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद ये चार वेद प्रसिद्ध हैं तथा शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, निरुक्त, ज्योतिष, ये वेदों के छह अंग और इनकी व्याख्या रूप ग्रन्थ उपांग हैं। लोकोत्तरिक भावश्रुत
५०. से किं तं लोगोत्तरियं भावसुयं ?
लोगोत्तरियं भावसुयं जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पन्ननाण-दसणधरेहिं तीत-पडुप्पन्नमणागतजाणएहिं सव्वन्नूहिं सव्वदरिसीहिं तेलोक्कवहिय-महिय-पूइएहिं अप्पडिहयवरनाण-दसणधरेहिं पणीतं दुवालसंगं गणिपिडगं । तं जहा—आयारो १ सूयगडो २ ठाणं ३ समवाओ ४ वियाहपण्णत्ती ५ नायाधम्मकहाओ ६ उवासगदसाओ ७ अंतगडदसाओ ८ अणुत्तरोववाइयदसाओ ९ पण्हावागरणाई १० विवागसुयं ११ दिट्ठिवाओ १२ य । से तं लोगोत्तरिय भावसुयं । से तं नोआगमतो भावसुयं । से तं भावसुयं ।
[५० प्र.] भगवन् ! लोकोत्तरिक (नोआगम) भावश्रुत का क्या स्वरूप है ?
[५० उ.] आयुष्मन् ! (ज्ञान-दर्शनावरण कर्म के क्षय से) उत्पन्न केवलज्ञान और केवलदर्शन को धारण करने वाले, भूत-भविष्यत् और वर्तमान कालिक पदार्थों को जानने वाले, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, त्रिलोकवर्ती जीवों द्वारा अवलोकित, महित—पूजित, अप्रतिहत श्रेष्ठ ज्ञान-दर्शन के धारक अरिहंत भगवन्तों द्वारा प्रणीत १ आचारांग, २