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________________ स्वकथ्य (प्रथम संस्करण से) श्रमण भगवान् महावीर द्वारा भाषित और गणधरों आदि द्वारा संकलित अंग, उपांग, आगमों से यह अनुयोगद्वारसूत्र अपनी वर्णनशैली और वर्ण्य विषय की दृष्टि से भिन्न है। समस्त आगमों के आशय और उसकी व्याख्या को समझने की कुंजी रूप होने से इसका अनूठा ही स्थान है। इसमें आध्यात्मिक विचारों की विवेचना की अपेक्षा दार्शनिक दृष्टि प्रमुख होने से इसे उत्तरवर्ती जैन दार्शनिकों के लिए मार्गनिर्देशक शास्त्र कहा जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो शास्त्र-व्याख्याताओं के लिए यह सूत्र प्रशिक्षण (Training) देने वाला है। अनुयोग का अर्थ : _ 'अनुयोग' अनु और योग शब्दों का यौगिकरूप है। इसका सामान्य अर्थ है—शब्द का उसके अर्थ के साथ योग सम्बन्ध जोड़ना। लेकिन प्रत्येक शब्द मूल में एक होते हुए भी अनेकार्थक है। वे अर्थ उसमें गर्भित हैं। अतः यथाप्रसंग शब्द और निश्चित अर्थ की संयोजना अनुयोग कहलाता है। आगमों में अनुयोग की चर्चा : नन्दी और समवायांग सूत्र में जो आगमों का परिचय दिया है, उसमें आचारांग आदि आगमों के संख्येय अनुयोगद्वार हैं, यह उल्लेख है। स्थानांगसूत्र में द्रव्यानुयोग के दस प्रकार बताये हैं। भगवतीसूत्र में अनुयोगद्वारसूत्रगत अनुयोगद्वार के चार मूल द्वारों में से नयविचारणा का विस्तार से वर्णन किया है। इस संक्षिप्त संकेत से यह कहा जा सकता है कि भगवान् महावीर के समय में सूत्र की व्याख्या करने की जो विधा थी, उस सबका समावेश रूप—एक परिपक्वरूप अनुयोगद्वारसूत्र है। ___ अनुयोगद्वारसूत्र में स्वीकृत व्याख्यापद्धति का परिज्ञान तो पाठक स्वयं इस शास्त्र के अध्ययन से कर लेंगे कि व्याख्येय शब्द का निक्षेप करके उसके अनेक अर्थों का निर्देश कर उस शब्द का प्रस्तुत में कौन सा अर्थ ग्राह्य है, यह शैली अपनायी है। इसी शैली का अनुसरण वैदिक और बौद्ध-साहित्य में किया गया है, जो अनेक ग्रंथों को देखने से स्पष्ट हो जाता है। किन्तु विस्तारभय से उस सबका यहाँ उल्लेख किया जाना संभव नहीं है। अनुयोगद्वारसूत्र के कर्ता: इस सूत्र के कर्ता स्थविर आर्यरक्षित माने जाते हैं। यह इस आधार पर माना जाता है कि आर्य वज्र तक तो जिस किसी भी सूत्र का अनुयोग करना होता उसको चरणकरणानुयोग आदि [६]
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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