SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चारों अनुयोग सम्बन्धी मानकर व्याख्या की जाती थी, परन्तु समयपरिवर्तन को लक्ष्य में लेकर दीर्घद्रष्टा स्थविर आर्यरक्षित ने अनुयोग का पार्थक्य किया, तब से किसी भी सूत्र का सम्बन्ध चारों अनुयोगों में से किसी एक अनुयोग से जोड़ कर अर्थ किया जाने लगा। इसीलिए इसके कर्ता स्थविर आर्यरक्षित माने जाते हैं। लेकिन आचारांग आदि आगमों के परिचय का जैसा पर्व में उल्लेख किया गया है, उससे स्पष्ट है कि इसके मूल उपदेष्टा श्रमण भगवान् महावीर हैं और उसी आधार से स्थविर आर्यरक्षित ने अनुयोगद्वारसूत्र का निर्वृहण (दोहन) किया। इसीलिए कर्ता के रूप में स्थविर आर्यरक्षित का पुण्य स्मरण किया जाने लगा। उपसंहार : स्वकथ्य का अंतिम चरण उपसंहार है। इसमें पूर्वोक्त संक्षिप्त विचारों का संक्षेप में दुहराना योग्य नहीं है। अतः सर्वप्रथम स्व. विद्वद्वर्य युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी म. का एवं उनकी दूरदर्शी श्लाघनीय प्रतिभा का अभिनंदन करता हूँ कि उनकी प्रेरणा से आगम वाङ्मय सर्वजन सुलभ हो सका। मुझे हर्ष है कि समिति के माध्यम से प्रस्तुत अनुयोगद्वारसूत्र द्वारा इस प्रकाशन में सहयोग देने की आकांक्षा की पूर्ति का अवसर प्राप्त हुआ। ___ समिति के प्रबन्धकों को साधुवाद है कि स्वर्गीय युवाचार्यश्री द्वारा निर्धारित प्रणाली के अनुसार वे आगम-साहित्य के प्रकाशन में संलग्न है। वयोवृद्ध एवं ज्ञानवृद्ध पं. श्री शोभाचन्द्रजी भारिल्ल के प्रति प्रमोदभाव व्यक्त करता हूँ कि वे अपनी विद्वत्ता को सुनियोजित कर आगमों को जनगम्य बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं। ___ अंत में मैं अपने सहयोगी श्री देवकुमारजी जैन की आत्मीयता का स्मरण करता हूँ कि इस जटिल माने जाने वाले सूत्र को सुसंपादित करने एवं सुगम से सुगमतर बनाने में अपनी योग्यता, बुद्धि का पूरा-पूरा योग दिया है। उनके श्रम का सुफल है कि शास्त्रगत भावों को इतना स्पष्ट कर दिया कि वे सर्वजनहिताय सरल, सुबोध हो सके। ___ इसी संदर्भ में एक बात और स्पष्ट कर देता हूँ कि शास्त्रगत भावों को स्पष्ट करने में पूर्ण विवेक रखा है, फिर भी कहीं स्खलना हो गई हो तो पाठक क्षन्तव्य मानकर संशोधित और सूचित करने का लक्ष्य रखेंगे। किं बहुना ! -केवल मुनि अहमदगनर १५-४-१९८७ [७]
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy