SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुयोगद्वारसूत्र मधुघट है, यह घृतघट है' ऐसा कहा जाता है। विवेचन— यहां भविष्य में भावश्रुत की कारण रूप पर्याय होने की योग्यता की अपेक्षा भव्यशरीरद्रव्यश्रुत का स्वरूप निर्दिष्ट किया है। ज्ञशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यश्रुत ३९. से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवतिरित्तं दव्वसुतं ? जाणयसरीरभवियसरीरवतिरित्तं पत्तयपोत्थयलिहियं । [३९ प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त-द्रव्यश्रुत का क्या स्वरूप है ? [३९ उ.] आयुष्मन् ! ताड़पत्रों अथवा पत्रों के समूहरूप पुस्तक में अथवा वस्त्रखंडों पर लिखित श्रुत ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यश्रुत है। - विवेचन— पूर्वोक्त ज्ञशरीर और भव्यशरीर द्रव्यश्रुत का लक्षण घटित न होने से उनसे भिन्न यह द्रव्यश्रुत का लक्षण यहां निरूपित किया है। पत्रादि पर लिखित श्रुत भावश्रुत का कारण होने से उभयव्यतिरिक्त-द्रव्यश्रुत है। पत्र आदि पर लिखे श्रुत में उपयोग रहितता होने से द्रव्यत्व है। आत्मा, देह और शब्द आगम के कारण हैं। इनका अभाव होने से अथवा पत्र आदि में लिखित श्रुत में अचेतनता होने के कारण नोआगमता है। 'सुय' पद की संस्कृतछाया 'सूत्र' भी होती है, अतः शिष्य की बुद्धि की विशदता के लिए सुय के प्रकरण में प्रकारान्तर से सूत्र (सूत) की भी व्याख्या की जाती है ४०. अहवा सुत्तं पंचविहं पण्णत्तं । तं जहा—अंडयं १ बोंडयं २ कीडयं ३ बालयं ४ वक्कयं ५ । [४०] अथवा (ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्य-) सूत्र पांच प्रकार का है—१. अंडज, २. बोंडज, ३. कीटज, ४. वालज, ५. बल्कज। ४१. से किं तं अंडयं? अंडयं हंसगब्भादि । से तं अंडयं । [४१ प्र.] भगवन् ! अंडज किसे कहते हैं ? [४१ उ.] आयुष्मन् ! हंसगर्भादि से बने सूत्र को अंडज कहते हैं। ४२. से किं तं बोंडयं ? बोंडयं फलिहमादि । से तं बोंडयं । [४२ प्र.] भगवन् ! बोंडज किसे कहते हैं ? [४२ उ.] आयुष्मन् ! बोंड कपास या रुई से बनाये गये सूत्र को कहते हैं। ४३. से किं तं कीडयं ? कीडयं पंचविहं पण्णत्तं । तं जहा—पट्टे १ मलए २ अंसुए ३ चीणंसुए ४ किमिरागे ५।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy