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________________ श्रुतनिरूपण ३१ ज्ञायकशरीरद्रव्यश्रुत ३७. से किं तं जाणयसरीरदव्वसुतं ? जाणयसरीरदव्वसुतं सुतत्तिपदत्थाहिकारजाणयस्स जं सरीरयं ववगयचुतचावितचत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा सिद्धसिलाथलगयं वा, अहो ! णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिवेणं भावेणं सुए इ पयं आघवियं पण्णवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं। जहा को दिलुतो ? अयं मधुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी । से तं जाणयसरीरदव्वसुतं । [३७ प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीर-द्रव्यश्रुत का क्या स्वरूप है ? [३७ उ.] आयुष्मन् ! श्रुतपद के अर्थाधिकार के ज्ञाता के व्यपगत, च्युत, च्यावित, त्यक्त, जीवरहित शरीर को शय्यागत, संस्तारकगत अथवा सिद्धाशिला-तपोभूमिगत देखकर कोई कहे—अहो ! इस शरीररूप परिणत पुद्गलसंघात द्वारा जिनोपदेशित भाव से 'श्रुत' इस पद की गुरु से वाचना ली थी, शिष्यों को सामान्य रूप से प्रज्ञापित और विशेष रूप से प्ररूपित, दर्शित, निदर्शित, उपदर्शित किया था, उसका वह शरीर ज्ञायकशरीरद्रव्यावश्यक है। शिष्य- इसका दृष्टान्त ? आचार्य- (जैसे किसी घड़े में से मधु या घी निकाल लिये जाने के बाद कहा जाये कि) यह मधु का घड़ा है, यह घी का घड़ा है। ___ इसी प्रकार निर्जीव शरीर भूतकालीन श्रुतपर्याय का आधाररूप होने से ज्ञायकशरीर-द्रव्यश्रुत कहलाता है। विवेचन— यहां ज्ञायकशरीरद्रव्यश्रुत का स्वरूप बतलाया है। सूत्रगत पदों की विस्तृत व्याख्या ज्ञशरीरद्रव्यावश्यक के अनुरूप जानना चाहिए। जीवविप्रमुक्तता के आधार पर पत्थर आदि पुद्गलसंघातों में भी कदाचित् श्रुतज्ञातृत्व, कर्तृत्व एवं मुक्तत्व की संभावना की जाय तो उसका निराकरण करने के लिए सूत्र में शय्यागत आदि पदों की योजना की है। भव्यशरीरद्रव्यश्रुत ३८. से किं तं भवियसरीरदव्वसुतं ? भवियसरीरदव्वसुतं जे जीवे जोणीजम्मण-निक्खंते इमेणं चेव सरीरसमुस्सएणं आदत्तएणं जिणोवइटेणं भावेणं सुए इ पयं सेकाले सिक्खिस्सति, ण ताव सिक्खति । जहा को दिटुंतो ? अयं मधुकुंभे भविस्सति, अयं घयकुंभे भविस्सति । से तं भवियसरीरदव्वसुतं । [३८ प्र.] भगवन् ! भव्यशरीरद्रव्यश्रुत का क्या स्वरूप है ? [३८ उ.] आयुष्मन् ! भव्यशरीरद्रव्यश्रुत का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिए—समय पूर्ण होने पर जो जीव योनि में से निकला और प्राप्त शरीरसंघात द्वारा भविष्य में जिनोपदिष्ट भावानुसार श्रुतपद को सीखेगा, किन्तु वर्तमान में सीख नहीं रहा है, ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीर-द्रव्यश्रुत है। शिष्य- इसका दृष्टान्त क्या है ? आचार्य- (मधु और घी जिन घड़ों में भरा जाने वाला है, परन्तु अभी भरा नहीं है, उनके लिये) 'यह
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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