________________
३०
[३५ प्र.] भगवन् ! आगम की अपेक्षा द्रव्यश्रुत का क्या स्वरूप है ?
[३५ उ.] आयुष्मन् ! जिस साधु आदि ने श्रुत यह पद सीखा है, स्थिर, जित, मित, परिजित किया है यावत जो ज्ञायक है वह अनुपयुक्त नहीं होता है आदि। यह आगम द्रव्यश्रुत का स्वरूप है।
विवेचन — सूत्र में आगम द्रव्यश्रुत का स्वरूप बतलाया है कि श्रुतपद के अभिधेय आचारादि शास्त्रों को जिसने सीख तो लिया है, किन्तु उसके उपयोग से शून्य है, इस कारण वह आगम से द्रव्यश्रुत है ।
'जाव कम्हा' पद द्वारा आवश्यक विषयक पूर्वोक्त शब्दनय आदि की मान्यता सम्बन्धी सूत्रालापक तक का अतिदेश किया गया है जो इस प्रकार है
'णामसमं घोषसमं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं । से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए. धम्मकहाए णो अणुप्पेहाए । कम्हा ? अणुवओगो दव्व मिति कट्टु ।'
णेगमस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगं दव्वावस्सयं (दव्वसुयं) दोण्णि अणुवउत्ता आगमओ दोण्णि दव्वावस्सयाइं (दव्वसुयाइं) तिण्णि अणुवउत्ता आगमओ तिण्णि दव्वावस्सयाइं (दव्वसुयाई) एवं जावइया अणुवत्ता तावइयाइं ताइं णेगमस्स आगमओ दव्वावस्सयाइं (दव्वसुयाई) ।
अनुयोगद्वारसूत्र
एवमेव ववहारस्स वि ।
संगहस्स एगो वा अणेगा वा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा आगमओ दव्वावस्सयं (दव्वसुयं) वा दव्वावस्सयाणि (दव्वसुयाणि) वा से एगे दव्वावस्सए (दव्वसुए)।
उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमाओ एगं दव्वावस्सयं (दव्वसुयं), पुहुत्तं नेच्छइ ।
तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू । कम्हा ?*
।
इनका अर्थ द्रव्यावश्यक के प्रसंग में किये गये अर्थ के अनुरूप है। किन्तु सर्वत्र आवश्यक के स्थान में श्रुत शब्द का प्रयोग करना चाहिए।
नोआगमद्रव्यश्रुत
३६. से किं तं णोआगमतो दव्वसुयं ?
णोआगमतो दव्वसुयं तिविहं पन्नतं । तं जहा — जाणयसरीरदव्वसुयं १ भवियसरीरदव्वसुयं २ जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्तं दव्वसुयं ३ ।
[३६ प्र.] भगवन् ! नोआगमद्रव्यश्रुत का क्या स्वरूप है ?
[३६ उ.] आयुष्मन् ! नोआगमद्रव्यश्रुत तीन प्रकार का कहा है। जैसे- १. ज्ञायकशरीरद्रव्यश्रुत, २. भव्यशरीरद्रव्यश्रुत, ३ . ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यश्रुत ।
विवेचन— सूत्र में नोआगमद्रव्यावश्यक के समान नोआगमद्रव्यश्रुत के भी तीन भेदों के नामों का उल्लेख है। क्रम से अब इन तीनों का स्पष्टीकरण करते हैं ।
देखें सूत्र संख्या १४, १५ का अर्थ ।
१.
[३५]