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श्रुतनिरूपण
ठवणासुयं जण्णं कट्ठकम्मे वा जाव सुए इ ठवणा ठविजति । से तं ठवणासुयं । [३२ प्र.] भगवन् ! स्थापनाश्रुत का स्वरूप क्या है ?
[३२ उ.] आयुष्मन् ! काष्ठ यावत् कौड़ी आदि में यह श्रुत है,' ऐसी जो स्थापना, कल्पना या आरोप किया जाता है, वह स्थापनाश्रुत है।
३३. नाम-ठवणाणं को पतिविसेसो ? नाम आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होजा आवकहिया वा । [३३ प्र.] भगवन् ! नाम और स्थापना में क्या विशेषता—अन्तर है ?
[३३ उ.] आयुष्मन् ! नाम यावत्कथिक होता है, जबकि स्थापना इत्वरिक और यावत्कथिक दोनों प्रकार की होती है।
विवेचन- यहां नाम और स्थापनारूप श्रुत का स्वरूप बतलाने के साथ उन दोनों में अन्तर का निर्देश किया
नाममात्र से श्रुत नामश्रुत है—नाम्ना—नाममात्रेण श्रुतं नामश्रुतमिति—इस समास के अनुसार जिस जीव, अजीव आदि का श्रुत यह नाम रख लिया जाता है, वह नामश्रुत है। जीव आदि का श्रुत नाम रखने का कारण पूर्वोक्त नामावश्यक के कथनानुसार जानना चाहिए। ___ स्थापनाश्रुत का विवेचन भी पूर्वोक्त स्थापनावश्यक के अनुरूप है। किन्तु आवश्यक के बदले यहां श्रुत शब्द का प्रयोग करना चाहिए। अतएव तदाकार, अतदाकार काष्ठादि अथवा काष्ठादि से निर्मित आकृति में जो श्रुतपठनादि क्रियावन्त साधु आदि की स्थापना की जाती है, यह स्थापनाश्रुत है।
___ नाम और स्थापना आवश्यक के सदृश ही नाम और स्थापना श्रुत में भी अन्तर जानना चाहिए कि नाम का प्रयोग वस्तु के सद्भाव रहने तक होता है जबकि स्थापना वस्तु के सद्भाव पर्यन्त और यथायोग्य अल्पकाल के लिए भी की जा सकती है। द्रव्यश्रुत के भेद
३४. से किं तं दव्वसुयं ? दव्वसुयं दुविहं पण्णत्तं । तं जहा—आगमतो य १ नोआगमतो य २ । [३४ प्र.] भगवन् ! द्रव्यश्रुत का क्या स्वरूप है ?
[३४ उ.] आयुष्मन् ! द्रव्यश्रुत दो प्रकार का है। जैसे—१ आगमद्रव्यश्रुत, २ नोआगमद्रव्यश्रुत। आगमद्रव्यश्रुत
३५. से किं तं आगमतो दव्वसुयं ?
आगमतो दव्वसुयं जस्स णं सुए त्ति पयं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं जाव कम्हा ? जइ जाणते अणुवउत्ते ण भवइ । से तं आगमतो दव्वसुयं ।