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________________ २८ अनुयोगद्वारसूत्र जिसके द्वारा पूर्णतया प्राप्ति होती है वह आवश्यक है—'ज्ञानादिगुणाः मोक्षो वा आसमन्ताद्वश्यः क्रियतेऽनेनेत्यावश्यकम्।' अथवा इन्द्रिय, कषायादि भावशत्रुओं को सर्वतः वश में करने वालों के द्वारा जो किया जाता है, उसे आवश्यक कहते हैं-'आसमन्ताद् वश्या इन्द्रियकषायादिभावशत्रवो येषां, तैरेव क्रियते यत् तदावश्यकम् ।' २. अवश्यकरणीय- मुमुक्षु साधकों द्वारा नियमतः अनुष्ठेय होने के कारण अवश्यकरणीय है। ३.ध्रुवनिग्रह– अनादि होने के कारण कर्मों को तथा कर्मों के फल जन्म-जरा-मरणादि रूप संसार को भी ध्रुव कहते हैं और आवश्यक कर्म एवं कर्मफलरूप संसार का निग्रह करने वाला होने के कारण ध्रुवनिग्रह है। ४. विशोधि— कर्म से मलिन आत्मा की विशुद्धि का हेतु होने से आवश्यक विशोधि कहलाता है। ५. अध्ययनषट्कवर्ग- आवश्यकसूत्र में सामायिक आदि छह अध्ययन होने से यह अध्ययनषट्कवर्ग ६. न्याय— अभीष्ट अर्थ की सिद्धि का सम्यक् उपाय होने से न्याय है। अथवा जीव और कर्म के अनादिकालीन सम्बन्ध के अपनयन का कारण होने से भी न्याय कहलाता है। ७. आराधना— आराध्य—मोक्षप्राप्ति का हेतु होने से आराधना है। ८. मार्ग- मार्ग का अर्थ है उपाय । अतः मोक्षपुर का प्रापक-उपाय होने से मार्ग है। इस प्रकार से सूत्रकार ने पहले जो 'आवस्सयं निक्खिविस्सामि' प्रतिज्ञा की थी, तदनुसार आवश्यक का न्यास करके वर्णन किये जाने से यह आवश्यकाधिकार समाप्त हुआ। श्रुत के भेद ३०. से किं तं सुयं ? सुयं चउव्विहं पण्णत्तं । तं जहा—नामसुयं १ ठवणासुयं २ दव्वसुयं ३ भावसुयं ४ । [३० प्र.] भगवन् ! श्रुत का क्या स्वरूप है ? [३० उ.] आयुष्मन् ! श्रुत चार प्रकार का है—१ नामश्रुत, २ स्थापनाश्रुत, ३. द्रव्यश्रुत और ४ भावश्रुत। विवेचन- सूत्रकार ने आवश्यक के अनन्तर 'सुयं निक्खविस्सामि'–श्रुत का निक्षेप करूंगा, इस प्रतिज्ञानुसार निक्षेपविधि से श्रुत के स्वरूप का वर्णन करना प्रारंभ किया है। नाम और स्थापना श्रुत ३१. से किं तं नामसुयं ? नामसुयं जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा सुए इ नामं कीरति । से तं नामसुयं । . [३१ प्र.] भगवन् ! नामश्रुत का क्या स्वरूप है ? [३१ उ.] आयुष्मन् ! जिस किसी जीव या अजीव का, जीवों या अजीवों का, उभय का अथवा उभयों का 'श्रुत' ऐसा नाम रख लिया जाता है, उसे नामश्रुत कहते हैं। ३२. से किं तं ठवणासुयं ?
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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