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________________ आवश्यकनिरूपण आगमभावावश्यक २४. से किं तं आगमतो भावावस्सयं ? आगमतो भावावस्सयं जाणए उवउत्ते । से तं आगमतो भावावस्सयं । [२४ प्र.] भगवन् ! आगमभावावश्यक का क्या स्वरूप है ? [२४ उ.] आयुष्मन् ! जो आवश्यक पद का ज्ञाता हो और साथ ही उपयोग युक्त हो, वह आगमभावावश्यक कहलाता है। विवेचन- सूत्र में आगमभावावश्यक के स्वरूप का निर्देश किया है। ज्ञायक होने के साथ जो उसके उपयोग से भी युक्त हो वह आगम से भाव-आवश्यक है। अर्थात् आवश्यक के अर्थज्ञान से जनित उपयोग को भाव और उस भाव से युक्त आवश्यक को भावावश्यक कहते हैं एवं आवश्यक के अर्थ के ज्ञाता का आवश्यक में उपयोगरूप परिणाम आगमभावावश्यक है। ज्ञायक एवं उपयोगयुक्त साधु को उस परिणाम से युक्त होने के कारण अभेदविवक्षा से भावावश्यक कहा जाता है। नोआगमभावावश्यक २५. से किं तं नोआगमतो भावावस्सयं ? नोआगमतो भावावस्सयं तिविहं पण्णत्तं । तं जहा लोइयं १ कुप्पावयणियं २ लोगुत्तरियं [२५ प्र.] भगवन् ! नोआगमभावावश्यक किसे कहते हैं ? [२५ उ.] आयुष्मन् ! नोआगमभावावश्यक तीन प्रकार का है। जैसे—१. लौकिक, २. कुप्रावचनिक और ३. लोकोत्तरिक। विवेचन-नोआगमद्रव्यावश्यक के अनुरूप नोआगमभावावश्यक के भी लौकिक आदि तीन भेद हैं। क्रम से उनकी व्याख्या इस प्रकार हैलौकिक भावावश्यक २६. से किं तं लोइयं भावावस्सयं ? लोइयं भावावस्सयं पुव्वण्हे भारहं अवरण्हे रामायणं । से तं लोइयं भावावस्सयं । [२६ प्र.] भगवन् ! लौकिक भावावश्यक का क्या स्वरूप है ? [२६ उ.] आयुष्मन् ! दिन के पूर्वार्ध में महाभारत का और उत्तरार्ध में रामायण का वाचन करने, श्रवण करने को लौकिक नोआगमभावावश्यक कहते हैं। विवेचन- सूत्र में नोआगम से लौकिक भावावश्यक का स्वरूप बतलाया है कि नियत समय पर लोकव्यवहार में आगमरूप से माने गये महाभारत, रामायण आदि का वांचना और श्रवण अवश्य करने योग्य होने से
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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