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अनुयोगद्वारसूत्र विशेष सामान्य से पृथक् हैं या अपृथक् हैं ? यदि प्रथमपक्ष स्वीकार किया जाय तो सामान्य के अभाव में खरविषाणवत् विशेष सम्भव नहीं हैं और विशेष सामान्य से अपृथक् होने से वे सामान्य ही हैं। इसलिए सामान्य से व्यतिरिक्त विशेष सम्भव नहीं हैं। अतः जितने भी द्रव्य-आवश्यक हैं, वे सभी सामान्य से अव्यतिरिक्त होने के कारण एक ही आगम-द्रव्य-आवश्यक रूप हैं।
अतीत, अनागत पर्यायों को छोड़कर वर्तमान स्वकीय पर्याय को स्वीकार करने वाला ऋजुसूत्रनय एक आगमद्रव्य-आवश्यक को मानता है, पार्थक्य भेद को स्वीकार नहीं करता है। क्योंकि अतीत पर्याय के विनष्ट होने और अनागत पर्याय के अनुत्पन्न होने से वह वर्तमान पर्याय को ही मानता है और वह वर्तमान पर्याय एक सामयिक होने से एक ही है। इसी कारण इस नय की दृष्टि में पृथक्त्व—नानात्व नहीं है। जिससे इस नय की मान्यतानुसार आगमद्रव्य-आवश्यक एक ही है, अनेक नहीं।
.. शब्दप्रधान नयों का नाम शब्दनय है। शब्द के द्वारा ही अर्थावगम होने से ये शब्द को प्रधान मानते हैं। शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत के भेद से शब्दनय तीन हैं। इनका मन्तव्य है कि ज्ञातृत्व और अनुपयुक्तता का समन्वय सम्भव नहीं है। क्योंकि ज्ञाता होने पर अनुपयुक्त और अनुपयुक्त होने पर ज्ञाता यह स्थिति बन नहीं सकती है। ज्ञाता है तो वह उसमें उपयुक्त है और यदि अनुपयुक्त है तो वह उसका ज्ञाता नहीं है। इसलिए आवश्यकशास्त्र के अनुपयुक्त ज्ञाता को लेकर की जाने वाली आगमद्रव्य-आवश्यक की प्ररूपणा असत् है।
इस प्रकार से आगमद्रव्य-आवश्यक का स्वरूप एवं तत्सम्बन्धित नयों का मन्तव्य जानना चाहिए। नोआगमद्रव्य-आवश्यक
१६. से किं तं नोआगमतो दव्वावस्सयं ?
नोआगमतो दव्वावस्सयं तिविहं पण्णत्तं । तं जहा—जाणगसरीरदव्वावस्सयं १ भवियसरीरदव्वावस्सयं २ जाणगसरीरभवियसरीरवतिरित्तं दव्वावस्सयं ३ ।
[१६ प्र.] भगवन् ! नोआगमद्रव्य-आवश्यक का स्वरूप क्या है ?
[१६ उ.] आयुष्मन् ! नोआगमद्रव्य-आवश्यक तीन प्रकार का है। यथा—१. ज्ञायकशरीरद्रव्यावश्यक, २. भव्यशरीरद्रव्यावश्यक, ३. ज्ञायकशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्यावश्यक।
विवेचन- सूत्र में भेदों के द्वारा नोआगमद्रव्यावश्यक का स्वरूप बताया है। नो शब्द का प्रयोग सर्वथा और एकदेश दोनों प्रकार के निषेधों में होता है। यहां नोआगमद्रव्यावश्यक के भेदों में 'नो' शब्द सर्वथा और एकदेश अभांव के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। क्योंकि इन भेदों में आगम का आवश्यकादि ज्ञान का सर्वथा अभाव है और एकदेशप्रतिषेधवचन में नो शब्द का उदाहरण इस प्रकार जानना चाहिए—आवर्तादि क्रियाओं को करते और वंदनासूत्र आदि रूप आगम का उच्चारण करते हुए जो आवश्यक करते हैं, वे नोआगमद्रव्यावश्यक हैं। इसके तीन प्रकार हैं। अब क्रम से उनका विवेचन करते हैं। नोआगमज्ञायकशरीरद्रव्यावश्यक
१७. से किं तं जाणगसरीरदव्यावस्सयं ?