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अनुयोगद्वारसूत्र
निष्पक्ष हो । १५. देश, काल, भाव का ज्ञाता हो । १६. आसन्नलब्धप्रतिभ—प्रतिवादी को परास्त करने की प्रतिभा से सम्पन्न हो। १७. नानाविधदेशभाषाविज्ञ—अनेक देशों की भाषाओं का ज्ञाता हो। १८. पंचविध आचारयुक्त ज्ञानाचार आदि पांच प्रकार के आचारों का पालक हो। १९. सूत्रार्थतदुभय-विधिज्ञ सूत्र, अर्थ एवं उभय (सूत्रार्थ) की विधि का जानकार हो। २०. आहरण-हेतु-उपनय-नय-निपुण उदाहरण, हेतु, उपनय और नय दृष्टि का मर्मज्ञ हो। २१. ग्राहणाकुशल-शिष्य को तत्त्व ग्रहण कराने में कुशल हो। २२. स्वसमय-परसमयवित्—स्व और पर सिद्धान्त में निष्णात हो। २३. गम्भीर-उदार स्वभाव वाला हो। २४. दीप्तिमान् —परवादियों द्वारा परास्त न किया जा सके। २५. शिव–जनकल्याण करने की भावना से भावित हो। २६. सौम्य शान्त स्वभाव वाला हो। २७. गुणशतकलित—दया, दाक्षिण्य आदि सैकड़ों गुणों से युक्त हो। इस प्रकार के गुणों से युक्त व्यक्ति प्रवचन का अनुयोग करने में समर्थ होता है या अनुयोग करने का अधिकारी है।'
इस प्रकार अनुयोग सम्बन्धी वक्तव्यता जानना चाहिए। आवश्यक पद के निक्षेप की प्रतिज्ञा
६. जइ आवस्सयस्स अणुओगो आवस्सयण्णं किमंगं अंगाई ? सुयक्खंधो सुयक्खंधा ? अज्झयणं अज्झयणाई ? उद्देसगो उद्देसगा ?
आवस्सयण्णं णो अंगं णो अंगाई, सुयक्खंधो णो सुयक्खंधा, णो अज्झयणं, अज्झयणाई, णो उद्देसगो, णो उद्देसगा ।
- [६ प्र.] भगवन् ! यदि यह अनुयोग आवश्यक का है तो क्या वह (आवश्यकसूत्र) एक अंग रूप है या अनेक अंग रूप है ? एक श्रुतस्कन्ध रूप है या अनेक श्रुतस्कन्ध रूप है ? एक अध्ययन रूप है या अनेक अध्ययन रूप है ? एक उद्देशक रूप है या अनेक उद्देशक रूप है ?
[६ उ.] आयुष्मन् ! आवश्यकसूत्र (अंगप्रविष्ट द्वादशांग से बाह्य होने से) एक अंग नहीं है और अनेक अंग रूप भी नहीं है। वह एक श्रुतस्कन्ध रूप है, अनेक श्रुतस्कन्ध रूप नहीं है, (छह अध्ययन होने से) अनेक अध्ययन रूप है, एक अध्ययन रूप नहीं है, एक या अनेक उद्देशक रूप नहीं है, (अर्थात् आवश्यकसूत्र में उद्देशक नहीं हैं।)
विवेचन— यहां आवश्यकसूत्र के परिचय सम्बन्धी एक और बहुवचन की अपेक्षा आठ प्रश्न हैं और उनके उत्तर दिये हैं कि यह छह अध्ययनात्मक श्रुतस्कन्ध रूप होने से अनेक अध्ययन और एक श्रुतस्कन्ध रूप है। शेष छह प्रश्न अग्राह्य होने से अनादेय है।
विशिष्ट शब्दों के अर्थ इस प्रकार हैंअंग- तीर्थंकरों के अर्थ उपदेशानुसार गणधरों द्वारा शब्दनिबद्ध श्रुत की अंग संज्ञा है। श्रुतस्कन्ध- अध्ययन का समूहात्मक बृहत्काय खंड श्रुतस्कन्ध कहलाता है। अध्ययन– शास्त्र के किसी एक विशिष्ट अर्थ के प्रतिपादक अंश को अध्ययन कहते हैं। उद्देशक– अध्ययन के अन्तर्गत नामनिर्देशपूर्वक वस्तु का निरूपण करने वाला प्रकरणविशेष उद्देशक
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अनुयोग-वृत्ति प. ७