________________
आवश्यक निरूपण
कहलाता है।
आवश्यक आदि पदों का निक्षेप करने की प्रतिज्ञा
७. तम्हा आवस्सयं णिक्खिविस्सामि, सुयं णिक्खिविस्सामि, खंधं णिक्खिविस्सामि, अज्झयणं णिक्खिविसामि ।
११
[७] (आवश्यकसूत्र श्रुतस्कन्ध और अध्ययन रूप है) इसलिए आवश्यक का निक्षेप करूंगा । इसी तरह श्रुत, स्कन्ध एवं अध्ययन शब्दों का निक्षेप – यथासंभव नाम आदि में न्यास करूंगा ।
८. जत्थ य जं जाणेज्जा णिक्खेवं णिक्खिवे णिरवसेसं ।
जत्थ वि य न जाणेज्जा चउक्कयं निक्खिवे तत्थ ॥ १ ॥
[८] यदि निक्षेप्ता (निक्षेप करने वाला) जिस वस्तु के समस्त निक्षेपों को जानता हो तो उसे (उस जीवादि रूप वस्तु में) उन सबका निरूपण करना चाहिए और यदि सर्व निक्षेपों को न जानता हो तो चार ( नाम, स्थापना, द्रव्यं, भाव) निक्षेप तो करना ही चाहिए ॥ १॥
विवेचन — इन दो सूत्रों में आवश्यक आदि पदों का निक्षेप करने की प्रतिज्ञा एवं अधिकतम, न्यूनतम निक्षेप करने के कारण व कर्ता की योग्यता का निर्देश किया है।
आवश्यक आदि पदों का निक्षेप करने का कारण- - पूर्व में यह स्पष्ट हो चुका है कि इस शास्त्र में आवश्यक का अनुयोग किया जायेगा। इसके अर्थ का स्पष्ट रूप से विवेचन तभी हो सकता है जब पदों का निक्षेप किया जाये। इसलिए आवश्यक आदि पदों का निक्षेप करने की प्रतिज्ञा की है ।
निक्षेप करने की उपयोगिता — यह है कि शब्द के विविध अर्थों में से प्रसंगानुरूप अर्थ की अभिव्यक्ति निक्षेप द्वारा ही होती है। ऐसा करने पर अर्थ का प्रतिपादन किस दृष्टि से किया जा रहा है, यह बात समझ में आती है। क्योंकि अप्रस्तुत का निराकरण करके प्रस्तुत का विधान करने में निक्षेप ही समर्थ है। जिससे प्रकृत अर्थ का बोध और अप्रकृत अर्थ का निराकरण हो जाता है ।
निक्षेपकर्ता की योग्यता — वाग्व्यवहार की प्रामाणिकता का कारण निक्षेप है। इसलिए सामान्यतया तो साधारण, असधारण सभी व्यक्ति इसके करने के अधिकारी हैं। लेकिन यदि निक्षेप्ता नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव आदि जितने रूप से शब्द का अर्थ जाने, अधिक से अधिक उतने प्रकारों द्वारा शब्द का निक्षेप करे। यदि इन सब भेदों से परिचित न तो उसे शब्द का नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चार प्रकार से अवश्य निक्षेप करना चाहिए। क्योंकि इनका क्षेत्र व्यापक होने से प्रत्येक पदार्थ कम से कम नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव रूप तो है ही ।
आवश्यक के निक्षेप
९. से किं तं आवस्सयं ?
आवस्सयं चउव्विहं पण्णत्तं । तं जहा नामावस्सयं १ ठवणावस्सयं २ दव्वावस्सयं ३ भावावस्सयं ४ ।