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________________ अनुयोगद्वारसूत्र अंगबाह्य — अंगश्रुत का आधार लेकर जिनकी रचना स्थविर करते हैं, उन शास्त्रों को अंगबाह्य कहते हैं। कालिक श्रुत- जिस श्रुत का रात्रि व दिन के प्रथम और अंतिम प्रहर में स्वाध्याय किया जाता है। उत्कालिकश्रुत- जो अस्वाध्यायकाल को छोड़कर कालिक से भिन्नकाल में भी पढ़ा जाता है। अंगप्रविष्ट आदि विभागों में परिगणित शास्त्रों के नाम एवं परिचय के लिए नंदीसूत्र देखिये। ५. जइ उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो ? किं आवस्सगस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो ? आवस्सगवइरित्तस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो ? । आवस्सगस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो, आवस्सगवइरित्तस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो । इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च आवस्सगस्स अणुओगो । [५ प्र.] भगवन् ! यदि उत्कालिक श्रुत के उद्देश आदि ४ होते हैं तो क्या वे उद्देश आदि आवश्यक के होते हैं अथवा आवश्यकव्यतिरिक्त (आवश्यकसूत्र से भिन्न) उत्कालिक श्रुत के होते हैं ? [५ उ.] आयुष्मन् ! यद्यपि आवश्यक और आवश्यक से भिन्न दोनों के उद्देश आदि ४ होते हैं परन्तु यहां (इस शास्त्र में) आवश्यक का अनुयोग प्रारम्भ किया जा रहा है। विवेचन-सूत्र में शास्त्र के निश्चित वर्ण्य विषय का संकेत किया गया है कि सूत्रकार को आवश्यकसूत्र का अनुयोग करना अभीष्ट है और इष्ट होने का कारण यह है कि आवश्यकसूत्र सकल समाचारी का मूल आधार है। आवश्यकसूत्र में उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के प्रवर्तमान होने पर भी सूत्रकार ने उनका उल्लेख न करके अवसर प्राप्त होने की अपेक्षा केवल अनुयोग करने का संकेत किया है। अनुयोग का निरुक्त्यर्थ— सूत्र के साथ अनु–नियत-अनुकूल अर्थ का योग—जोड़ना अर्थात् इस सूत्र का यह अभिधेय है. इस प्रकार की संयोजना करके शिष्य को समझाना. सत्र के अर्थ का कथन करना। अथवा एक सूत्र के अनन्त अर्थ होते हैं, इस प्रकार अर्थ महान् और सूत्र अणुरूप होता है, अतएव अणु-सूत्र के साथ अर्थ के योग को अणुयोग (अनुयोग) कहते हैं।' • अनुयोगविषयक वक्तव्यता का क्रम इस प्रकार है १. निक्षेप- नाम, स्थापना आदि रूप से वस्तु स्थापित करके अनुयोग (कथन) करना। २. एकार्थ- अनुयोग के पर्यायवाची शब्दों को कहना जैसे अनुयोग, नियोग, भाषा, विभाषा, वार्तिक, ये अनुयोग के समानार्थक नाम हैं। १. निययाणुकूलो जोगो सुत्तस्सत्थेण जो य अणुओगो । सुत्तं च अणुं तेणं जोगो अत्थस्स अणुओगो ॥ -अनुयोग. वृत्ति प.७ २. अणुओगो य निओगो भास विभासा य वत्तियं चेव । एए अणुओगस्स य नामा एगट्ठिया पंच ॥ -अनुयोगवृत्ति प.७
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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