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________________ सूत्रस्पर्शिकनियुक्ति निरूपण ४४३ ४. अलंकारयुक्त- उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों से विभूषित। ५. उपनीत— उपनय से युक्त अर्थात् दृष्टान्त को दार्टान्तिक में घटित करना। ६.सोपचार— ग्रामीण भाषाओं से रहित और संस्कृतादि साहित्यिक भाषाओं से युक्त। ७. मित— अक्षरादि के प्रमाण से नियत। ८. मधुर— सुनने में मनोहर ऐसे मधुर वर्णों से युक्त। अनधिगतार्थ की बोधविधि— सूत्र के समुच्चारित होने पर भी अनधिगत रहे अर्थाधिकारों के परिज्ञान कराने की विधि इस प्रकार है १. संहिता— अस्खलित रूप से पदों का उच्चारण करना। जैसे—करेमि भंते सामाइयं इत्यादि। २. पद-सुबन्त और तिङन्त शब्द को पद कहते हैं। जैसे—करेमि यह प्रथम तिङन्त पद है, भंते यह सुबन्त द्वितीय पद है, 'सामाइयं' यह तृतीय पद है इत्यादि। ३. पदार्थ- पद के अर्थ करने को पदार्थ कहते हैं। जैसे—करेमि-करता हूं, इस क्रियापद से सामायिक करने की उन्मुखता का बोध होता है, भंते ! भगवन् !, यह पद गुरुजनों को आमंत्रित करने के अर्थ का बोधक है, 'सामाइयं-सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूप सम का जिससे आय-लाभ हो, उस सामायिक को यह सामायिक पद का अर्थ है। ४. पदविग्रह– संयुक्त पदों का प्रकृतिप्रत्ययात्मक विभाग रूप विस्तार करना। अनेक पदों का एक पद करना समास कहलाता है। जैसे भयस्य अंतो भयान्तः, जिनानाम् इन्द्रः जिनेन्द्रः इत्यादि। ५. चालना- प्रश्नोत्तरों द्वारा सूत्र और अर्थ की पुष्टि करना। ६. प्रसिद्धि- सूत्र और उसके अर्थ का विविध युक्तियों द्वारा जैसा कि वह है उसी प्रकार से स्थापना करना प्रसिद्धि है। अर्थात् प्रथम अन्य युक्ति देकर फिर सूत्रोक्त युक्ति की सिद्धि करना प्रसिद्धि कहलाती है। व्याख्या के इन षड्विध लक्षणों में से सूत्रोच्चारण और पदच्छेद करना सूत्रानुगम का विषय है—कार्य है। सूत्रानुगम द्वारा यह कार्य किये जाने के बाद सूत्रालापकनिक्षेप-सूत्रालापकों को नाम, स्थापना आदि निक्षेपों में निक्षिप्त करता है, अर्थात् सूत्रालापकों को नाम स्थापना आदि निक्षेपों में सूत्रालापक निक्षेप विभक्त करता है। शेष पदविग्रह, चालना और प्रसिद्धि यह सब सूत्रस्पर्शिकनियुक्ति के विषय हैं। अर्थात् इन कार्यों को सूत्रस्पर्शिकनियुक्त्यनुगम संपादित करता है तथा नैगमादि नय भी प्रायः पदार्थ आदि का विचार करने वाले होने से जब पदार्थ आदि को ही विषय करते हैं, तब इस दृष्टि से वे सूत्रस्पर्शिकनियुक्त्यनुगम के अन्तर्गत हो जाते हैं। इस प्रकार जब सूत्र, व्याख्या का विषयभूत बनता है, तब सूत्र, सूत्रानुगम, सूत्रालापकनिक्षेप और सूत्रस्पर्शिकनियुक्त्यनुगम ये सब युगपत् एक जगह मिल जाते हैं। स्वसमय आदि का अर्थ- सूत्र में आगत स्वसमय आदि पदों का भावार्थ इस प्रकार हैस्वसमयपद- स्वसिद्धान्तसम्मत जीवादिक पदार्थों का प्रतिपादक-बोधक पद। परसमयपद- परसिद्धान्त-सम्मत प्रकृति, ईश्वर आदि का प्रतिपादन करने वाला पद। बंधपद- परसमय सिद्धान्त के मिथ्यात्व का प्रतिपादक पद। क्योंकि कर्मबंध एवं कुवासना का हेतु होने से वह बंधपद कहलाता है।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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