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________________ ४४२ पद कहना । १९. स्वभावहीनदोष जिस पदार्थ का जो स्वभाव है, उससे विरुद्ध प्रतिपादन करना । जैसे अग्नि शीत है, आकाश मूर्तिमान् है, ये दोनों ही स्वभाव से हीन है। २०. व्यवहितदोष — जिसका कथन प्रारम्भ किया है, उसे छोड़कर जो प्रारम्भ नहीं किया, उसकी व्याख्या करके फिर पहले प्रारम्भ किये हुए की व्याख्या करना । २१. कालदोष— भूतकाल के वचन को वर्तमान काल में उच्चारण करना । जैसे—' रामचन्द्र ने वन में प्रवेश किया, ' ऐसा कहने के बदले 'रामचन्द्र वन में प्रवेश करते हैं' कहना । २२. यतिदोष — अनुचित स्थान पर विराम लेना —— रुकना अथवा सर्वथा विराम ही नहीं लेना । २३. छविदोष— छवि अलंकार विशेष से शून्य होना । - २४. समयविरुद्धदोष स्वसिद्धान्त से विरुद्ध प्रतिपादन करना । २५. वचनमात्रदोष — निर्हेतुक वचन उच्चारण करना । जैसे कोई पुरुष अपनी इच्छा से किसी स्थान पर भूमि का मध्यभाग कहे। २६. अर्थापत्तिदोष जिस स्थान पर अर्थापत्ति के कारण अनिष्ट अर्थ की प्राप्ति की जाये। जैसे— घर का मुर्गा नहीं मारना चाहिए, इस कथन से यह अर्थ निकला कि दूसरे मुर्गों को मारना चाहिए। २७. असमासदोष — जिस स्थान पर समास विधि प्राप्त हो वहां न करना अथवा जिस समास की प्राप्ति हो, उस स्थान पर उस समास को न करके अन्य समास करना असमासदोष है। २८. उपमादोष हीन उपमा देना, जैसे मेरु सरसों जैसा है, अथवा अधिक उपमा देना, जैसे सरसों मेरु जैसा है अथवा विपरीत उपमा देना, जैसे—मेरु समुद्र समान है। यह उपमादोष है। २९. रूपकदोष — निरूपणीय मूल वस्तु को छोड़कर उसके अवयवों का निरूपण करना, जैसे—पर्वत के निरूपण को छोड़कर उसके शिखर आदि अवयवों का निरूपण करना या समुद्रादि किसी अन्य वस्तु के अवयवों का निरूपण करना । हैं अनुयोगद्वारसूत्र ३०. निर्देशदोष — निर्दिष्ट पदों की एकवाक्यता न होना । ३१. पदार्थदोष — वस्तु के पर्याय को एक पृथक् पदार्थ रूप में मानना जैसे—सत्ता वस्तु की पर्याय है किन्तु वैशेषिक उसे पृथक् पदार्थ कहते हैं । ३२. संधिदोष— जहां संधि होना चाहिए, वहां संधि नहीं करना, अथवा करना तो गलत करना । लक्षणयुक्त सूत्र इन बत्तीस दोषों से रहित होने के साथ ही आठ गुणों से युक्त भी होता है। ये आठ गुण ये निद्दोसं सारवंतं च हेउजुत्तमलंकियं । उवणीयं सोवयारं च मियं महुरमेव च ॥ १. निर्दोष सर्व दोषों से रहित । २. सारवान् — सारयुक्त होना । ३. हेतुयुक्त — अन्वय और व्यतिरेक हेतुओं से युक्त ।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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