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________________ ४४४ अनुयोगद्वारसूत्र मोक्षपद— प्राणियों के सद्बोध का कारण होने से तथा समस्त कर्मक्षय रूप मोक्ष का प्रतिपादक होने से स्वसमय मोक्षपद कहलाता है। अथवा प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश के भेद से चार प्रकार के बंध का प्रतिपादन करने वाला पद बंधपद तथा कृत्स्नकर्मक्षय रूप मोक्ष का प्रतिपादक पद मोक्षपद कहलाता है। यद्यपि पूर्वोक्त प्रकार की व्याख्या करने से बंध और मोक्ष ये दोनों पद स्वसमय पद से भिन्न नहीं हैं, अभिन्न हैं, तथापि स्वसमय पद का दूसरा भी अर्थ होता है, यह दिखाने के लिए अथवा शिष्य जनों को सुगमता से बोध कराने और उनकी बुद्धि को विशद–निर्मल बनाने के लिए पृथक्-पृथक् निर्देश किया है। इसीलिए सामायिक का प्रतिपादन करने वाले सामायिक पद और सामायिक से व्यतिरिक्त नारक तिर्यंचादि के बोधक नोसामायिक पद इन दोनों पदों का अलग-अलग उपन्यास किया है। इस प्रकार से सूत्रस्पर्शिक नियुक्त्यनुगम के अधिकृत विषयों का निरूपण हो जाने से नियुक्त्यनुगम एवं साथ ही अनुगम अधिकार की वक्तव्यता की भी समाप्ति जानना चाहिए। नयनिरूपण की भूमिका ६०६. (अ) से किं तं णए ? सत्त मूलणया पण्णत्ता । तं जहा—णेगमे संगहे ववहारे उज्जुसुए सद्दे समभिरूढे एवंभूते । तत्थ णेगेहिं माणेहिं मिणइ त्ति णेगमस्स य निरुत्ती १ । सेसाणं पि नयाणं लक्खणमिणमो सुणह वोच्छं ॥ १३६॥ संगहियपिंडियत्थं संगहवयणं समासओ बिंति २ ।। वच्चइ विणिच्छियत्थं ववहारो सव्वदव्वेसु. ३ ॥ १३७॥ पच्चुप्पन्नग्गाही उज्जुसुओ णयविही मुणेयव्वा ४ । इच्छइ विसेसियतरं पच्चुप्पण्णं णओ सद्दो ५ ॥ १३८॥ वत्थूओ संकमणं होइ अवत्थु णये समभिरूढे ६ । वंजण–अत्थ तदुभयं एवंभूओ विसेसेइ ७ ॥ १३९॥ [६०६ प्र.] भगवन् ! नय का क्या स्वरूप है ? [६०६ उ.] आयुष्मन् ! मूल नय सात हैं। वे इस प्रकार-१. नैगमनय, २. संग्रहनय, ३. व्यवहारनय, ४. ऋजुसूत्रनय, ५. शब्दनय, ६. समभिरूढनय और ७. एवंभूतनय। विवेचन— सूत्र में सात नयों के नाम गिनाये हैं। यद्यपि वचनों के प्रकार जितने ही नय हैं, लेकिन उन सब का समावेश सात नयों में हो जाता है और यह इसलिए कि उनके द्वारा सभी तरह के जिज्ञासुओं को वस्तुनिरूपण की शैली का सुगमता से बोध हो जाता है।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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