________________
अनुगम निरूपण
लोकप्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हुई असंख्यात श्रेणियों के आकाशप्रदेश जितने होते हैं ।
चारित्रसामायिक, देशविरतिसामायिक और सम्यक्त्वसामायिक इन तीनों सामायिकों से प्रपतित जीव सम्यक्त्व आदि सामायिकों के प्रतिपत्ता ( प्राप्त करने वाले) तथा पूर्वप्रतिपन्नक जीवों की अपेक्षा अनन्तगुणे हैं।
४३९
२१. अन्तर— सामायिक का अन्तर (विरह) काल कितना होता है ? सम्यक् और मिथ्या इन विशेषणों से विहीन सामान्य श्रुतसामायिक में जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त का और उत्कृष्ट अंतर अनन्त काल का है। एक जीव की अपेक्षा सम्यक्, श्रुत, देशविरति, सर्वविरतिरूप सामायिक का अन्तरकाल जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन अर्धपुद्गलपरावर्तकाल रूप है। इतना बड़ा अन्तर काल आशातनाबहुल जीवों की अपेक्षा हुआ करता है ।
२२. निरन्तर काल— बिना अन्तर के लगातार कितने काल तक सामायिक ग्रहण करनें वाले होते हैं ? सम्यक्त्व और श्रुत सामायिक के प्रतिपत्ता अगारी (गृहस्थ) निरंतर उत्कृष्टतः आवलिका के असंख्यातवें भाग काल तक होते हैं और चारित्रसामायिक वाले आठ समय तक होते हैं । जघन्यतः समस्त सामायिकों के प्रतिपत्ता दो समय तक निरंतर बने रहते हैं।
२३. भव- कितने भव तक सामायिक रह सकती है ? पल्य के असंख्यातवें भाग तक सम्यक्त्व और देशविरति सामायिक, आठ भव पर्यन्त चारित्रसामायिक और अनन्तकाल तक श्रुतसामायिक होती है
1
२४. आकर्ष— सामायिक के आकर्ष एक भव में या अनेक भवों में कितने होते हैं ? अर्थात् एक भव में या अनेक भवों में सामायिक कितनी बार धारण की जाती है ? तीनों सामायिकों (सम्यक्त्व, श्रुत और देशविरत सामायिक) के आकर्ष एक भव में उत्कृष्ट से सहस्रपृथक्त्व और सर्वविरति के शतपृथक्त्व होते हैं । जघन्य से समस्त सामायिकों का आकर्ष एक भव में एक ही होता है तथा अनेक भवों की अपेक्षा सम्यक्त्व व देशविरति सामायिकों के उत्कृष्ट असंख्य सहस्रपृथक्त्व और सर्वविरति के सहस्रपृथक्त्व आकर्ष होते हैं ।
२५. स्पर्श सामायिक वाले जीव कितने क्षेत्र का स्पर्श करते हैं ? सम्यक्त्व और चारित्र ( सर्वविरति ) सामायिक वाले (केवलिसमुद्घात की अपेक्षा) समस्त लोक का और जघन्य लोक के असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं। कितनेक श्रुत और देशविरति सामायिक वाले उत्कृष्ट से चौदह राजू प्रमाण लोक के सात राजू, पांच राजू, चार, तीन और दो राजू प्रमाण लोक का स्पर्श करते हैं ।
२६. निरुक्ति — सामायिक की निरुक्ति क्या है ? निश्चित उक्ति-कथन को निरुक्ति कहते हैं । अंतएव सम्यग्दृष्टि अमोह, शोधि, सद्भाव, दर्शन, बोधि, अविपर्यय, सुदृष्टि इत्यादि सामायिक के नाम हैं । अर्थात् सामा का पूर्ण वर्णन ही सामायिक की निरुक्ति है
1
यह उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम की व्याख्या है। अब सूत्र के प्रत्येक अवयव का विशेष व्याख्या करने रूप सूत्रस्पर्शिक निर्युक्त्यनुगम का कथन करते हैं ।
सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्त्यनुगम
६०५. से किं तं सुत्तप्फासियनिज्जुत्तिअणुगमे ?
सुत्तप्फासियनिज्जुत्तिअणुगमे सुत्तं उच्चारेयव्वं अखलियं अमिलियं अविच्चामेलियं