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________________ ४४० अनुयोगद्वारसूत्र पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कंठोट्ठविप्पमुकं गुरुवायणोवगयं । तो तत्थ णज्जिहिति ससमयपयं वा परसमयपयं वा बंधपयं वा मोक्खपयं वा सामाइयपयं वा णोसामाइयपयं वा । तो तम्मि उच्चारिते समाणे केसिंचि भगवंताणं केइ अत्थाहिगार अहिगया भवंति, केसिंचि य केइ अणहिगया भवंति, ततो तेसिं अणहिगयाणं अत्थाणं अभिगमणत्थाए पदेणं पदं वप्तइस्सामि । संहिता य पदं चेव पदत्थो पदविग्गहो । चालणा य पसिद्धी य, छव्विहं विद्धि लक्खणं ॥ १३५॥ से तं सुत्तप्फासियनिज्जुत्तिअणुगमे । से तं निज्जुत्तिअणुगमे । से तं अणुगमे । [६०५ प्र.] भगवन् ! सूत्रस्पर्शिकनियुक्त्यनुगम का क्या स्वरूप है ? [६०५ उ.] आयुष्मन् ! (जिस सूत्र की व्याख्या की जा रही है उस सूत्र को स्पर्श करने वाली नियुक्ति के अनुगम को सूत्रस्पर्शिकनियुक्त्यनुगम कहते हैं।) इस अनुगम में अस्खलित, अमिलित, अव्यत्यानेडित, प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्णघोष, कंठोष्ठविप्रमुक्त तथा गुरुवाचनोपगत रूप से सूत्र का उच्चारण करना चाहिए। इस प्रकार से सूत्र का उच्चारण करने से ज्ञात होगा कि यह स्वसमयपद है, यह परसमयपद है, यह बंधपद है, यह मोक्षपद है, अथवा यह सामायिकपद है, यह नोसामायिकपद है। सूत्र का निर्दोष विधि से उच्चारण किये जाने पर कितने ही साधु भगवन्तों को कितनेक अर्थाधिकार अधिगत हो जाते हैं और किन्हीं-किन्हीं को (क्षयोपशम की विचित्रता से) कितनेक अर्थाधिकार अनधिगत रहते हैं—ज्ञात नहीं होते हैं । अतएव उन अनधिगत अर्थों का अधिगम कराने के लिए (ज्ञात हो जायें इसलिए) एक-एक पद की प्ररूपणा (व्याख्या) करूंगा। जिसकी विधि इस प्रकार है १. संहिता, २. पदच्छेद, ३. पदों का अर्थ, ४. पदविग्रह, ५. चालना और ६. प्रसिद्धि। यह व्याख्या करने की विधि के छह प्रकार हैं। - यही सूत्रस्पर्शिक नियुक्त्यनुगम का स्वरूप है। इस प्रकार से नियुक्त्यनुगम और अनुगम की वक्तव्यता का वर्णन पूर्ण हुआ। विवेचन— सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षेप में किये गये संकेतानुसार सूत्रस्पर्शिकनियुक्त्यनुगम की यहां व्याख्या की है। यह नियुक्त्यनुगम सूत्रस्पर्शिक है। सूत्र का लक्षण इस प्रकार है अप्परगंथमहत्थं बत्तीसा दोसविरहियं जं च । लक्खणजुत्तं सुत्तं अट्ठहि य गुणेहि उववेयं ॥ ___ अर्थात् जो अल्पग्रन्थ (अल्प अक्षर वाला) और महार्थयुक्त (अर्थ की अपेक्षा महान्—अधिक विस्तार वाला) हो, (जैसे—उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्) तथा बत्तीस दोषों से रहित, आठ गुणों से सहित और लक्षणयुक्त हो, उसे सूत्र कहते हैं। . सूत्र के बत्तीस दोषों के नाम -- सूत्रविकृति के कारणभूत बत्तीस दोषों के लक्षण सहित नाम इस प्रकार हैं १. अलीक (अनृत) दोष- अविद्यमान पदार्थों का सद्भाव बताना, जैसे जगत् का कर्ता ईश्वर है और विद्यमान पदार्थों का अभाव बताना—अपलाप करना, जैसे आत्मा नहीं है। यह दोनों असत्य-प्ररूपक होने से
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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