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________________ ४३८ अनुयोगद्वारसूत्र तप-संयम रूप चारित्रसामायिक को, निर्ग्रन्थप्रवचन रूप श्रुतसामायिक को और तत्त्वश्रद्धानरूप सम्यक्त्वसामायिक को, इन तीनों सामायिकों को मोक्षमार्ग मानते हैं । सर्वसंवर रूप चारित्र के अनन्तर ही मोक्ष की प्राप्ति होने से ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूत, ये चारों नय संयम रूप चारित्रसामायिक को ही मोक्षमार्ग रूप मानते हैं। १३. किम्- सामायिक क्या है ? द्रव्यार्थिकनय के मत से सामायिक जीवद्रव्य है और पर्यायार्थिक नय के मत से सामायिक जीव का गुण है। १४. कितने प्रकार की- सामायिक कितने प्रकार की है ? सामायिक तीन प्रकार की हैं—१. सम्यक्त्वसामायिक, २. श्रुतसामायिक और ३. चारित्रसामायिक। पुनः इनके भेद-प्रभेदों का कथन करना। १५. किसको किस जीव को सामायिक प्राप्त होती है ? जिसकी आत्मा संयम, नियम और तप में सन्निहित होती है तथा जो जीव त्रस और स्थावर समस्त प्राणियों पर समताभाव रखता है, उस जीव को सामायिक प्राप्त होती है। १६. कहाँ–सामायिक कहाँ-कहाँ होती है ? इसका निर्देश करना । जैसे—१. क्षेत्र, २. दिशा, ३. काल, ४. गति, ५. भव्य, ६. संज्ञी, ७. उच्छ्वास, ८. दृष्टि और ९. आहारक इत्यादि का आश्रय लेकर कौनसी सामायिक कहां हो सकती है, इसका कथन करना। १७. किसमें- सामायिक किस-किस में होती है ? सम्यक्त्व सामायिक सर्वद्रव्यों और सर्वपर्यायों में होती है किन्तु श्रुत और चारित्र सामायिक सर्वद्रव्यों में तो होती है, किन्तु समस्त पर्यायों में नहीं पाई जाती है। देशविरति सामायिक न तो सर्वद्रव्यों में और न सर्वपर्यायों में होती है। १८. कैसे— जीव सामायिक कैसे प्राप्त करता है ? मनुष्यत्व, आर्यक्षेत्र, जाति, कुल, रूप, आरोग्य, आयुष्य, बुद्धि, धर्मश्रवण, धर्मावधारण, श्रद्धा और संयम, इन लोकदुर्लभ बारह स्थानों की प्राप्ति होने पर जीव सामायिक को प्राप्त करता है। १९. कितने काल तक- सामायिक रह सकती है ? अर्थात् सामायिक का कालमान कितना है ? सम्यक्त्व और श्रुत सामायिक की उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक छियासठ सागरोपम और चारित्रसामायिक की देशोन पूर्वकोटि वर्ष की तथा जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। २०. कितने विवक्षित समय में सामायिक के प्रतिपद्यमानक, पूर्वप्रतिपन्न और सामायिक के पतित जीव कितने होते हैं ? क्षेत्रपल्योपम के असंख्यातवें भाग के प्रदेशों प्रमाण सम्यक्त्व और देशविरति सामायिक के प्रतिपद्यमानक जीव किसी एक काल में होते हैं। इनमें भी देशविरति के धारकों की अपेक्षा सम्यक्त्वसामायिक के धारक असंख्यात गुणे हैं । जघन्य एक, दो हो सकते हैं। श्रेणी के असंख्यातवें भाग में जितने आकाशप्रदेश होते हैं, उत्कृष्टतः उतने प्रतिपद्यमानक जीव एक काल में सम्यक् मिथ्याश्रुत भेदों से रहित सामान्य अक्षरश्रुतात्मक श्रुतसामायिक के धारक होते हैं। जघन्य एक दो होते हैं। सर्वविरतिसामायिक के धारक उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व और जघन्य एक-दो होते हैं। सम्यक्त्व और देशविरति सामायिक के पूर्वप्रतिपन्नक एक समय में उत्कृष्ट और जघन्य असंख्यात होते हैं। सम्यक् और मिथ्या विशेषण से रहित सामान्य अक्षरात्मक श्रुतसामायिक के एक काल में पूर्वप्रतिपन्नक घनीकृत
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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